Maveshi Bara: ek pari katha
Material type:
- 9789390973088
- CS 823.912 ORW
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | CS 823.912 ORW (Browse shelf(Opens below)) | Available | 167979 |
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जॉर्ज ऑर्वेल (1903-1950) का असली नाम एरिक ऑर्थर ब्लेयर था। उसका जन्म बिहार के मोतिहारी जिले में सन् 1903 में हुआ था। उसके पिता रिचर्ड बाल्मस्ले ब्लेयर ब्रिटिश भारत सरकार के अफीम विभाग में सरकारी अधिकारी थे। उसकी माँ का नाम इदा माबेल लिमोजिन था। पढ़ने के लिए उसे एक आवासीय विद्यालय (सेंट साइप्रियन) में भेज दिया गया। 1914 में उसकी पहली देश-भक्ति पूर्ण कविता प्रकाशित हुई। उसकी पहली प्रकाशित (1933) किताब ‘डाउन एंड आउट इन पेरिस एंड लन्दन’ थी। यह वंचितों पर थी। इसके लेखक के रूप में उसने अपना छद्म नाम जॉर्ज ऑर्वेल रखा। यानी सन् 1933 में यही नया नाम उसकी पहचान बन गया। 1934 में उसका पहला उपन्यास ‘बार्मीज डेज’ छपा और 1935 में ‘क्लर्जी मेन्स डाटर’। द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व वह वामपंथी (ग़ैर-स्टालिनवादी) राजनीित में गम्भीर रूप से शामिल हो गया। उसका उपन्यास ‘द रोड टू विगन पियर’ (1937) उसे मध्यम स्तर की शोहरत दिला सका। यह उपन्यास खान मज़दूरों की रोज़मर्रे की ज़िन्दगी पर लिखा गया था, तो वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इसकी खूब प्रशंसा की। 1936 से 1938 तक वह स्पेन में रहा।
उसका एक अन्य उपन्यास ‘होमेज टू केटेलोनिया’ सन् 1938 में प्रकाशित हुआ था। फिर उसने एक और उपन्यास लिखा जिसका नाम था–‘कमिंग अप फॉर एयर’ (1939)। 1939 में वह ब्रिटेन वापस आ गया। स्टालिन और हिटलर की सन्धि ने उसे भीतर से हिला दिया। ऑर्वेल ने तब कहा था ‘बदतर के खिलाफ़ बुरे’ का बचाव किया जाना चाहिए। बाद में उसके दो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और चर्चित उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ (1945) और ‘नाइंटीन एटीफोर’ (1949) प्रकाशित हुए। वह आलोचनात्मक लेख भी लिखते रहे। (इनसाइड द ह्वेल) और समाजवादी साप्ताहिक पत्रिका ट्रिब्यून’ में एक काॅलम ‘एज आई प्लीज’ लिखते रहे। बाद में वह बी.बी.सी. से भी जुड़े और पत्रिका के साहित्यिक सम्पादक भी हो गये।
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