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Lok udhyog

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur; Printwell Pub.; 1989Edition: 1st edDescription: 398 pSubject(s): DDC classification:
  • H 338.62 JAI
Summary: भारत में लोक उद्योगों का महत्व मात्र आर्थिक समस्याओं को सुलझाने तक ही सीमित न रहकर सामाजिक समस्याओं को सुलझाने तक विस्तृत हुआ है प्रस्तुत पुस्तक में लोक उद्योगों को मात्र प्रार्थिक दृष्टिकोण से न देखकर इसके प्रशासनिक महत्व को भी देखा गया है। इस क्षेत्र में लोक उद्योगों के सामने आने वाली प्रशासनिक समस्याओं को विवेचित किया गया है सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन व उनके निर्धारित लक्ष्यों व प्राथमिकताओं को प्राप्त करने में लोक उद्योगों की भूमिका के प्रत्येक स्तर पर शोध उपरान्त विश्लेषण किया गया । प्रस्तुत पुस्तक में लोक उद्योगों से सम्बन्धित अनेक विषयों यथा संगठन के प्रारूप, नियन्त्ररण, प्रबन्ध मण्डल, जन सम्पर्क, समस्याएं व सुझाव आदि पर प्रकाश डाला गया है । इन विषयों के साथ न्याय करते हुए प्रशासनिक समस्याओं, जिनको पूर्व लेखकों ने महत्व नहीं दिया था, पर भी समान रूप से प्रकाश डाला गया है ।
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भारत में लोक उद्योगों का महत्व मात्र आर्थिक समस्याओं को सुलझाने तक ही सीमित न रहकर सामाजिक समस्याओं को सुलझाने तक विस्तृत हुआ है प्रस्तुत पुस्तक में लोक उद्योगों को मात्र प्रार्थिक दृष्टिकोण से न देखकर इसके प्रशासनिक महत्व को भी देखा गया है। इस क्षेत्र में लोक उद्योगों के सामने आने वाली प्रशासनिक समस्याओं को विवेचित किया गया है सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन व उनके निर्धारित लक्ष्यों व प्राथमिकताओं को प्राप्त करने में लोक उद्योगों की भूमिका के प्रत्येक स्तर पर शोध उपरान्त विश्लेषण किया गया ।

प्रस्तुत पुस्तक में लोक उद्योगों से सम्बन्धित अनेक विषयों यथा संगठन के प्रारूप, नियन्त्ररण, प्रबन्ध मण्डल, जन सम्पर्क, समस्याएं व सुझाव आदि पर प्रकाश डाला गया है । इन विषयों के साथ न्याय करते हुए प्रशासनिक समस्याओं, जिनको पूर्व लेखकों ने महत्व नहीं दिया था, पर भी समान रूप से प्रकाश डाला गया है ।

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