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Prakrat bhashaye aur bhartiya sanskriti me unka avdan

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur; Rajasthan Hindi Grantha Akadem; 1972Edition: 1st edDescription: 94 pDDC classification:
  • H 491.3 KAT
Summary: यह एक लघु पुस्तक का पुनर्मुद्रण है जो मैंने भारतीय विद्याभवन, बम्बई के सुयोग्य अध्यक्ष धीर संस्थापक श्री के० एम० मुंशी के धामंत्रण पर १९४५ में विद्याभवन सिरीज के तृतीय माला के रूप में लिखी थी। विगत दस वर्षों से यह पुस्तक धप्राप्य रही है, लेकिन इस सम्बन्ध में पाग्रहों की निरन्तरता लेखक के पास पहुँचती रही है। इस बीच कलकत्ता विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा-विज्ञान के खैर प्रोफेसर डा० सुकुमार सेन ने अपने मौलिक ग्रन्थ 'कम्पेरेटिव ग्रामर ग्राफ इन्डो धावन' को (इण्डियन लिग्विस्टिक्स में क्रमश: प्रकाशित) भारत की 'निग्विस्टिक सोसायटी' के विशेष प्रकाशन के रूप में १९६० में संशोधित करके प्रकाशित कर दिया है। फिर भी एक छोटी-सी परिचयात्मक पुस्तक के लिए प्रावश्यकता अनुभव की जाती रही जोकि विशेषज्ञों के लिए न लिखी जाकर वैज्ञानिक उपलब्ध सामग्री के आधार पर सामान्यतया लिखी गई हो। इसमें प्राद्योपान्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाए रखा गया है, केवल लोकप्रियता के लिए उसकी बलि नहीं दी गई है। इस मौलिक ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद से मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के क्षेत्र में अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। प्रोफेसर फैलिन एड गर्टन की 'बुद्धिष्ट हाइब्रिड संस्कृत ग्रामर एण्ड लेक्सिकन' विशेष महत्व की है, इसके अतिरिक्त प्रपभ्रंश और अन्य प्राकृतों में अनेक ग्रन्थ प्रकाश में मा चुके हैं। बनारस में 'प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी' की स्थापना इस प्रासाद की एक अन्य आधारशिला है। इसी परम्परा में बिहार में नालन्दा में बौद्ध अध्ययन संस्थान और वैशाली में जैन अध्ययन संस्थान की स्थापना हुई है।
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यह एक लघु पुस्तक का पुनर्मुद्रण है जो मैंने भारतीय विद्याभवन, बम्बई के सुयोग्य अध्यक्ष धीर संस्थापक श्री के० एम० मुंशी के धामंत्रण पर १९४५ में विद्याभवन सिरीज के तृतीय माला के रूप में लिखी थी। विगत दस वर्षों से यह पुस्तक धप्राप्य रही है, लेकिन इस सम्बन्ध में पाग्रहों की निरन्तरता लेखक के पास पहुँचती रही है। इस बीच कलकत्ता विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा-विज्ञान के खैर प्रोफेसर डा० सुकुमार सेन ने अपने मौलिक ग्रन्थ 'कम्पेरेटिव ग्रामर ग्राफ इन्डो धावन' को (इण्डियन लिग्विस्टिक्स में क्रमश: प्रकाशित) भारत की 'निग्विस्टिक सोसायटी' के विशेष प्रकाशन के रूप में १९६० में संशोधित करके प्रकाशित कर दिया है। फिर भी एक छोटी-सी परिचयात्मक पुस्तक के लिए प्रावश्यकता अनुभव की जाती रही जोकि विशेषज्ञों के लिए न लिखी जाकर वैज्ञानिक उपलब्ध सामग्री के आधार पर सामान्यतया लिखी गई हो। इसमें प्राद्योपान्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाए रखा गया है, केवल लोकप्रियता के लिए उसकी बलि नहीं दी गई है।

इस मौलिक ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद से मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के क्षेत्र में अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। प्रोफेसर फैलिन एड गर्टन की 'बुद्धिष्ट हाइब्रिड संस्कृत ग्रामर एण्ड लेक्सिकन' विशेष महत्व की है, इसके अतिरिक्त प्रपभ्रंश और अन्य प्राकृतों में अनेक ग्रन्थ प्रकाश में मा चुके हैं। बनारस में 'प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी' की स्थापना इस प्रासाद की एक अन्य आधारशिला है। इसी परम्परा में बिहार में नालन्दा में बौद्ध अध्ययन संस्थान और वैशाली में जैन अध्ययन संस्थान की स्थापना हुई है।

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