Devnagri lekhan tatha hindi vartani vyavstha v.1983
Material type:
- H 491.4309 Sha 2nd ed.
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Gandhi Smriti Library | H 491.4309 Sha 2nd ed. (Browse shelf(Opens below)) | Available | 40893 |
द्वितीय भाषा शिक्षण में जहाँ भाषा के मौखिक रूप को प्रधानता दी जाती है वहां भाषा के लिखित रूप के कौशलों— (लेखन वाचन) का अपेक्षित महत्व भी स्वीकार किया जाने लगा है। भाषा की मौखिक अभिव्यक्ति देश-काल-पात्र की सीमाओं से बंधी रहती है जबकि लिखित अभिव्यक्ति पर उक्त सीमाओं का प्रभाव उस रूप में नहीं होता। स्वगीण भाषा शिक्षण में लिपि-वर्तनी संबंधी ज्ञान और उसकी प्रयोगगत क्षमता भाषा अध्येता के लिए अत्यावश्यक है ।
आज केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वितीय भाषा और विदेशी भाषा के रूप में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, तत्संबंधी अनुसंधान तथा मुख्य रूप से अनुप्रयुक्त हिंदी भाषा विज्ञान और भाषा शिक्षण के उच्च अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। संविधान के 351वें अनुच्छेद में दिए गए निर्देशों के अनुसार हिंदी की विविध भूमिकाओं से संबंधित पाठ्यक्रम एवं पाठ्यसामग्री निर्माण जहाँ संस्थान के तत्वाव छान में किया जाता है वहीं संस्थान के अध्यापकों के द्वारा हिंदी शिक्षण-प्रतिक्षण संबंधी निजी शोध-परियोजनाओं को प्रोत्साहित करते हुए उनका प्रकाशन भी किया जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक संस्थान के अनुभवी अध्यापक डॉ० लक्ष्मीनारायण शर्मा के अनुभवजन्य अध्ययन का परिणाम है। इसमें विभिन्न भाषा-भाषियों के द्वारा भाषा अनुशिक्षण के दौरान की जाने वाली लिपि-वर्तनी संबंधी भूलों का न केवल आकलन एवं विश्लेषण ही प्रस्तुत किया है बल्कि उनके उपचार संबंधी सामग्री भी दी गई है। जिससे हिंदी-लिपि-वर्तनी शिक्षण के क्षेत्र में इस कार्य का महत्त्व स्वयंसिद्ध हो जाता है।
There are no comments on this title.