Prayojan moolak Hindi
Material type:
- H 491.43 PRY 2nd ed.
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.43 PRY 2nd ed. (Browse shelf(Opens below)) | Available | 40869 |
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H 491.43 PRA Rajbhasha hindi ke bahumukhi aayam / by C.J. Prasanna Kumari and R.I. Shanti | H 491.43 PRA Rajbhasha Hindi: vikash evam mahatva | H 491.43 PRY 2nd ed. Prayojan moolak Hindi | H 491.43 PRY 2nd ed. Prayojan moolak Hindi | H 491.43 RAI Bhartiya bhashaon se hindi mein anuwad ki samasyayen | H 491.43 RAI Hindi Bhasha Ka Vikas | H 491.43 RAJ Rajbhasha Hindi |
हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण के इतिहास को देखने से यह स्पष्ट है कि अभी तक हिंदी भाषा और साहित्य को शिक्षाक्रम में एक विषय के रूप में पढ़ाने और उसकी तैयारी करने पर विशेष बल दिया गया है। हिंदी को विभिन्न शास्त्रीय विषयों के लिए माध्यम भाषा के रूप में प्रयुक्त करने की दिशा में भी हिंदी- प्रदेश के विश्व विद्यालयों में पिछली दो दशाब्दियों में काफी प्रगति हुई है । परन्तु हिंदी-शिक्षण के इन प्रयोजनों के अतिरिक्त भी अनेक विशिष्ट प्रयोजन है जो व्यावहारिक प्रकृति के है तथा व्यापक सामाजिक सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हैं। ये अभी तक उपेक्षित रहे हैं और इन पर अब विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हिंदी के उपर्युक्त प्रयोजनमूलक स्वरूप पर सर्वांगीण रूप में शैक्षिक दृष्टि से विचार-विमर्श करने के लिए संस्थान ने अप्रैल 1974 में अपने दिल्ली कैम्पस में एक संगोष्ठी आयोजित की जिसमें प्रयोजन मूलक हिंदी की प्रकृति और व्यवहार-क्षेत्र के अतिरिक्त इसके सामाजिक, मनोभाषा वैज्ञानिक एवं शैक्षिक पक्षों पर अधिकारी विद्वानों ने आधार लेख प्रस्तुत किये तथा उन पर चर्चा-परिचर्चा हुई। संगोष्ठी के सम्पूर्ण कार्य विवरण को अब पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि संगोष्ठी से प्रेरित होकर कुछ विद्वानों ने अपने विचारों को लेख का रूप दिया (अनुक्रम में सं० 12, 13, 14 और 16) जिन्हें इस पुस्तक में सम्मिलित कर लिया गया है। प्रयोजनमूलक हिंदी के सम्बन्ध में संस्थान की विद्यासभा में दो प्रस्ताव भी आये थे वे (सं० 15 और 17 ) भी दिये जा रहे हैं। इनसे निश्चय ही पुस्तक की उपयोगिता बढ़ी है
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