Hindi praudha shiksha mala-1 v.1983
Material type:
- H 491.4307 Sha
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Gandhi Smriti Library | H 491.4307 Sha (Browse shelf(Opens below)) | Available | 36155 |
प्रस्तुत पुस्तक प्रौदों को द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी सिखाने के लिये तैयार की गई है। इस पुस्तक के पठन-पाठन में लगभग 100 घण्टे लगेंगे। जाशा की जाती है कि इस पुस्तक के अध्ययन के पश्चात शिक्षार्थी हिन्दी लिखने एवं पढ़ने में समर्थ होंगे एवं हिन्दी के साधारण वाक्य समझ और बोल सकेंगे। (मूलत: पठन एवं लेखन विधि से सिखाने का यहाँ प्रयास किया गया है। यह प्रयास कितना उपयोगी सिद्ध होता है इसके बारे में इस पुस्तक के प्रयोग के बाद ही निश्चित रूप से पता लगेगा।
इस पाठ्य पुस्तक में वर्णों की जानकारी समान आकृति के वर्ण समूह के आधार पर दी गई है। इस तरह से शिक्षार्थी वर्णों में आपस की समानता एवं भिन्नता को सहज जान सकेंगे और इस विधि से उन्हें अक्षर ज्ञान आसानी से हो सकेगा। शिक्षार्थी पढ़ना जोर लिखना सुगमता से शीघ्र सीख सकेंगे। यदि किसी पाठ में समान आकृति के एक वर्ग समूह के योग से शब्द न बन सके तो दो जाकृति के वर्ण समूहों की सहायता से बने शब्द उस पाठ में प्रस्तुत किये गये हैं। इस तरह से सभी वर्णों की जानकारी के पश्चात इन्हें शब्द कोश के क्रम में यानी वर्णमाला में प्रस्तुत किया गया है।
इस पाठ्य पुस्तक के प्रबन्ध में साधारण से असाधारण के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त को ध्यान में रखा गया है। जिन अक्षरों की पाठ में पहले जानकारी दे दो गई है उन्हें अगले पाठों में शिक्षार्थियों का ज्ञान प्रदत करने के लिये और शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। किसी भी पाठ में पांच से अधिक अक्षरों की जानकारी नहीं दी गई है। हर पाठ में भाषा सिखाने के लिये कुछ व्याकरण संबन्धो ज्ञान दिया गया है। ऐसा उन्हीं अक्षरों एवं शब्दों के आधार पर किया गया है जिनका ज्ञान पाठ में पहले ही दिया जा चुका है। व्याकरण संबंधी संरचनाएँ भी क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत की गई है। पुस्तक के प्रबन्ध में तिब्बती वर्मन भाषातों की संरचना को ध्यान में रखा गया है क्योंकि पुस्तक मूलतः अरुणाचल प्रदेश के मौदों को हिन्दी सिखाने के लिये लिखी गई है। उदाहरणतया इन भाषाओं के बोलने वालों के लिये जो ध्वनियों कठिन है ऐसी ध्वनियों को प्रकट करने वाले जनरों की जानकारी बाद में दी गई है। ऐसे अक्षरों को उनके समान आकृति वाले जनरों के साथ पाठ में नहीं सिखाया गया है। इसीलिये मूर्धन्य एवं महाप्राण ध्वनियों की जानकारी बाद में दी गई है। ऐसा करने से समान आकृति के आधार पर वर्णों का ज्ञान देने के सिद्धान्त का बहिष्कार किया गया है जैसे कि 'भ' को 'म' के साथ नहीं सिखाया गया इत्यादि। किसी भी जगर को अकेले में नहीं सिखाया गया है बल्कि इन्हें भाषा के शब्दों की सहायता से सिखाया गया है और जहाँ तक संभव हुआ है शब्दों के अर्थ चित्रों की सहायता से प्रकट करने का प्रयत्न किया गया है।
There are no comments on this title.