Bhasha aur lipi
Material type:
- H 491.1 NAR
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.1 NAR (Browse shelf(Opens below)) | Available | 36066 |
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय भाषाओं का अपभ्रंश से विकास, अपभ्रंश के काल निर्धारण, ध्वनियों के इतिहास, राजभाषा हिंदी की परंपरा, विकास और स्वरूप, संविधान एवं राजभाषा हिंदी वर्तनी के मानकरूप, पारिभाषिक शब्दावली प्रासंगिकता. हिंदी में शब्दों की व्युत्पत्ति की परंपरा और विकास, व्युत्पत्ति-कोश की प्रक्रिया, शब्द और अर्थ के आयामों, हिंदी में आगत शब्द हिंदी के विकास की परम्परा, संख्याओं के विकास आदि शीर्षकों पर मौलिक चर्चा की गई है। साथ ही राजभाषा हिंदी में अनुवाद, सरलीकरण. संक्षेपीकरण. लिंग निर्धारण आदि समस्याओं के समाधान के लिए नवीन एवं उपयोगी सुझाव भी दिए गए हैं । प्रस्तुत निबंध संग्रह का उद्देश्य मुख्यतः राजभाषा हिंदी के स्वरूप एवं विकास को नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करना है स्वातंत्र्योत्तर काल में देव नागरी के राजलिपि होने के कारण राष्ट्रलिपि के रूप में अपनाने का प्रश्न विचारणीय रहा है। राष्ट्र लिपि के रूप में रोमन लिपि की तुलना में देवनागरी की संभावनाओं पर विचार करते हुए विश्व की अन्य लिपियों से इसकी तुलना की गई है । भाषा और लिपि के परस्पर संबंध पर प्रकाश डालते हुए ब्राह्मी एवं नागरी लिपि के उद्भव विकास पर भी विचार किया गया है। देवनागरी में सुधार हेतु अब तक प्रस्तावित सुझावों की व्यावहारिकता भी विचारणीय विषय रही है। निश्चय ही देवनागरी लिप्यंतरण की समस्या के अध्ययन से हिंदी एवं अहिंदी भाषी लाभान्वित होंगे ।
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