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Bhartiya shasan evam rajniti:Indian government and politics

By: Material type: TextTextPublication details: Agra; Sahitya; 1989Edition: 5thDescription: 960 pDDC classification:
  • H 320.9 JAI
Summary: प्रस्तुत पुस्तक की रचना एम० फिल०, एम० ए० तथा बी० ए० (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान के विद्याबियों के लिए की गयी है और यह उत्तर भारत के अधिक विद्यालयों के तत्सम्बन्धी पाठ्यक्रम को समाविष्ट करती है। 'भारतीय शासन एवं राजनीति' पुस्तक का पंचम संस्करण पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। एक वर्ष की अवधि बीतने के पूर्व ही पुस्तक का प संस्करण समाप्त हो जाना पाठकों द्वारा पुस्तक की उपयोगिता स्वीकार किये जाने का परिचायक है। प्रस्तुत संस्करण पूर्णतया परिमार्जित और संशोधित है। संविधान द्वारा कुछ मूलभूत सिद्धान्तों और प्रशासनिक एवं प्रतिनिधि संस्थाओं के एक संरचनात्मक ढाँचे की व्यवस्था की जाती है लेकिन यह संरचनात्मक ढाँचा व्यावहारिक राजनीति की परिस्थितियों से परिचालित होता है और उसमें निरन्तर विकासशीलता की स्थिति होती है। व्यावहारिक राजनीति के तनाव और दबाव ही उसे सजीवता और शक्ति प्रदान करते हैं अथवा उसकी दुर्बलता के कारण बनते हैं। पिछले दो दशक में तो भारतीय राजनीति का घटनाचक्र निरन्तर और बहुत अधिक तीव्र गति से परिवर्तित होता रहा है तथा इस घटनाचक्र का विश्लेषण किये बिना सवैधानिक ढांचे की मीमांसा कर पाना सम्भव नहीं है, अतः मूल संवैधानिक ढाँचे को आधार बना कर और व्यावहारिक राजनीति के निरन्तर बदलते हुए परिप्रेक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए संविधान तथा सरकार के वास्तविक व्यावहारिक अध्ययन का प्रयास किया गया है। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय 'संविधान', 'सरकार' या 'राजनीति' के किसी विशिष्ट पहलू को विश्लेषणात्मक आलोचना त्मक विवेचना प्रस्तुत करता है पिछले लगभग एक दशक में भारतीय राजनीति का समस्त पटनाक्रम बहुत अधिक विवाद का विषय रहा है। हमने इस विवादास्पद राजनीतिक घटनाचक्र के सम्बन्ध में निष्पक्ष और सन्तु लित दृष्टिकोण अपनाने की चेष्टा की है। पुस्तक में विषय की 'आद्योपान्त' (Up-to-date ) विवेचना प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। मौलिक अधिकार, संवैधानिक संशोधन, राजनीतिक दल, चुनाव आदि के प्रसंग में विशेष रूप से इस बात को दृष्टि में रखा गया है कि पाठक नवीनतम संवैधानिक एवं राजनीतिक स्थिति का परिचय प्राप्त कर सकें। पिछले दो दशक में भारतीय शासन और राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर आंग्ल भाषा में कुछ विशिष्ट रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। पुस्तक के लेखन में इन सभी रचनाओं और पत्र-पत्रि काओं में प्रकाशित विभिन्न लेखों को दृष्टि में रखा गया है। इस प्रसंग में हम पेनविल ऑस्टिन, एफ० जे० बॅले, मारकुस फाण्डा, आमण्ड और कोलमैन, नारमन डी० पामर, रॉबर्ट एल० हार्टग्रेव मायरन वीनर, मॉरिस जोन्स, रजनी कोठारी, के० सदानन्द हेगड़े, डॉ० इकबाल नारायण, डॉ० बी० आर० मेहता, डॉ० हरिमोहन जैन और डॉ० श्रीराम माहेश्वरी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहेंगे, जिनकी कृतियों से विशेष सहायता ली गयी है। वस्तुतः यह सूची बहुत लम्बी है और उन सभी के प्रति अभार व्यक्त कर पाना या उन सबके नामों का उल्लेख कर पाना भी सम्भव नहीं है।
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प्रस्तुत पुस्तक की रचना एम० फिल०, एम० ए० तथा बी० ए० (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान के विद्याबियों के लिए की गयी है और यह उत्तर भारत के अधिक विद्यालयों के तत्सम्बन्धी पाठ्यक्रम को समाविष्ट करती है। 'भारतीय शासन एवं राजनीति' पुस्तक का पंचम संस्करण पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत

करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। एक वर्ष की अवधि बीतने के पूर्व ही पुस्तक का प

संस्करण समाप्त हो जाना पाठकों द्वारा पुस्तक की उपयोगिता स्वीकार किये जाने का परिचायक

है। प्रस्तुत संस्करण पूर्णतया परिमार्जित और संशोधित है। संविधान द्वारा कुछ मूलभूत सिद्धान्तों और प्रशासनिक एवं प्रतिनिधि संस्थाओं के एक संरचनात्मक ढाँचे की व्यवस्था की जाती है लेकिन यह संरचनात्मक ढाँचा व्यावहारिक राजनीति की परिस्थितियों से परिचालित होता है और उसमें निरन्तर विकासशीलता की स्थिति होती है। व्यावहारिक राजनीति के तनाव और दबाव ही उसे सजीवता और शक्ति प्रदान करते हैं अथवा उसकी दुर्बलता के कारण बनते हैं। पिछले दो दशक में तो भारतीय राजनीति का घटनाचक्र निरन्तर और बहुत अधिक तीव्र गति से परिवर्तित होता रहा है तथा इस घटनाचक्र का विश्लेषण किये बिना सवैधानिक ढांचे की मीमांसा कर पाना सम्भव नहीं है, अतः मूल संवैधानिक ढाँचे को आधार बना कर और व्यावहारिक राजनीति के निरन्तर बदलते हुए परिप्रेक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए संविधान तथा सरकार के वास्तविक व्यावहारिक अध्ययन का प्रयास किया गया है। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय 'संविधान', 'सरकार' या 'राजनीति' के किसी विशिष्ट पहलू को विश्लेषणात्मक आलोचना

त्मक विवेचना प्रस्तुत करता है पिछले लगभग एक दशक में भारतीय राजनीति का समस्त पटनाक्रम बहुत अधिक विवाद का विषय रहा है। हमने इस विवादास्पद राजनीतिक घटनाचक्र के सम्बन्ध में निष्पक्ष और सन्तु लित दृष्टिकोण अपनाने की चेष्टा की है।

पुस्तक में विषय की 'आद्योपान्त' (Up-to-date ) विवेचना प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। मौलिक अधिकार, संवैधानिक संशोधन, राजनीतिक दल, चुनाव आदि के प्रसंग में विशेष रूप से इस बात को दृष्टि में रखा गया है कि पाठक नवीनतम संवैधानिक एवं राजनीतिक स्थिति का परिचय प्राप्त कर सकें।

पिछले दो दशक में भारतीय शासन और राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर आंग्ल भाषा में कुछ विशिष्ट रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। पुस्तक के लेखन में इन सभी रचनाओं और पत्र-पत्रि काओं में प्रकाशित विभिन्न लेखों को दृष्टि में रखा गया है। इस प्रसंग में हम पेनविल ऑस्टिन, एफ० जे० बॅले, मारकुस फाण्डा, आमण्ड और कोलमैन, नारमन डी० पामर, रॉबर्ट एल० हार्टग्रेव मायरन वीनर, मॉरिस जोन्स, रजनी कोठारी, के० सदानन्द हेगड़े, डॉ० इकबाल नारायण, डॉ० बी० आर० मेहता, डॉ० हरिमोहन जैन और डॉ० श्रीराम माहेश्वरी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहेंगे, जिनकी कृतियों से विशेष सहायता ली गयी है। वस्तुतः यह सूची बहुत लम्बी है और उन सभी के प्रति अभार व्यक्त कर पाना या उन सबके नामों का उल्लेख कर पाना भी सम्भव नहीं है।

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