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Pramukh deshno ki videsh nitiyna

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur College book 1987Description: 552 pDDC classification:
  • H 327.11 SHA
Summary: "प्रमुख देशों की विदेश नीतियां' संशोधित संवर्द्धित रूप में पुनः प्रस्तुत है। इसमें विदेश नीति के सैद्धान्तिक धरातल को पूर्वापेक्षा सकि विस्तार से स्पष्ट किया गया है, विदेश नीति के तत्वों की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में समीक्षा की गई है। तत्पश्चात् अलग-अलग अध्यायों में विश्व के छः प्रमुख राष्ट्रों-ब्रिटेन, फाँस, प्रमेरिका, रूस, भारत और चीन की विदेश नीतियों तथा उनके अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का विवेचन है। इस विवेचन में संद्धान्तिक पोर व्यावहारिक दोनों पहलुषों को स्पष्ट किया गया है। इन देशों की विदेश नीतियों में जो प्राधुनिकतम प्रवृत्तियाँ उभरी हैं, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक रंगमंच पर ये देश जो नई भूमिकाएं निभा रहे हैं, उन सबका विवेचन और मूल्यांकन किया गया है। इन देशों की विदेश नीतियों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में परखा गया है और अनेक महत्त्वपूर्ण संद्धान्तिक पक्षों को उजागर किया गया है। 1985 के मध्य तक हुई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का समावेश पुस्तक में है । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में जो नए परिवर्तन आए हैं, रूस प्रमेरिका चीन के बीच जो त्रिकोणात्मक सम्बन्ध नए रूप में उभरे हैं, निगुंट आन्दोलन जो नया मोड़ ले रहा है, निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में जो नई उपराष्ट्रपति की मृत्यु के बाद क्रमशः यूरी प्रान्द्रोपोव, चेरनेन्को और फिर मार्च 1985 से गार्वोच्योव ने सोवियत विदेश नीति को जो नए दिशा-संकेत दिये हैं, उन सब पर यथोचित प्रकाश डाला गया है ।
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"प्रमुख देशों की विदेश नीतियां' संशोधित संवर्द्धित रूप में पुनः प्रस्तुत है। इसमें विदेश नीति के सैद्धान्तिक धरातल को पूर्वापेक्षा सकि विस्तार से स्पष्ट किया गया है, विदेश नीति के तत्वों की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में समीक्षा की गई है। तत्पश्चात् अलग-अलग अध्यायों में विश्व के छः प्रमुख राष्ट्रों-ब्रिटेन, फाँस, प्रमेरिका, रूस, भारत और चीन की विदेश नीतियों तथा उनके अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का विवेचन है। इस विवेचन में संद्धान्तिक पोर व्यावहारिक दोनों पहलुषों को स्पष्ट किया गया है। इन देशों की विदेश नीतियों में जो प्राधुनिकतम प्रवृत्तियाँ उभरी हैं, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक रंगमंच पर ये देश जो नई भूमिकाएं निभा रहे हैं, उन सबका विवेचन और मूल्यांकन किया गया है। इन देशों की विदेश नीतियों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में परखा गया है और अनेक महत्त्वपूर्ण संद्धान्तिक पक्षों को उजागर किया गया है। 1985 के मध्य तक हुई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का समावेश पुस्तक में है । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में जो नए परिवर्तन आए हैं, रूस प्रमेरिका चीन के बीच जो त्रिकोणात्मक सम्बन्ध नए रूप में उभरे हैं, निगुंट आन्दोलन जो नया मोड़ ले रहा है, निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में जो नई उपराष्ट्रपति की मृत्यु के बाद क्रमशः यूरी प्रान्द्रोपोव, चेरनेन्को और फिर मार्च 1985 से गार्वोच्योव ने सोवियत विदेश नीति को जो नए दिशा-संकेत दिये हैं, उन सब पर यथोचित प्रकाश डाला गया है ।

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