Shikshan samgri-nirman siddhant aur pravidhi v.1985
Material type:
- H 370.7 SHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 370.7 SHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 34415 |
भाषा शिक्षण के अनिवार्य घटकों में शिक्षक, शिक्षार्थी के अलावा तीसरा आवश्यक घटक शिक्षण सामग्री है। यह शिक्षण सामग्री शिक्षा के स्तर, शिक्षार्थी की आयु और उस के मानसिक विकास आदि पर तो निर्भर होती ही है, शिक्षण में प्रयुक्त प्रविधि, शिक्षण के उद्देश्य, शिक्षण के स्तर आदि पर भी आधारित होती है। शिक्षण का माध्यम और शिक्षण में प्रयुक्त उपकरण भी शिक्षण सामग्री की प्रकृति और स्वरूप को प्रभावित करते हैं। कक्षा में पढ़ाने के लिए बनाई जानेवाली सामग्री, भाषा प्रयोगशाला के माध्यम से पढ़ाए जानेवाली सामग्री और रेडियो तथा दूरदर्शन जैसे माध्यमों से पढ़ाए जाने वाली सामग्री अलग-अलग प्रकार की बनाई जाती है। इस प्रकार शिक्षण सामग्री निर्माण की विविधता के आधार अलग-अलग होते हैं।
शिक्षण सामग्री के लिए लक्ष्य भाषा का भाषावैज्ञानिक विश्लेषण तो आधार का कार्य करता ही है, शिक्षण के सिद्धान्तों और प्रविधियों के आधार पर पाठ्य बिन्दुओं का चयन और अनुस्तरण भी किया जाना आवश्यक होता है। इस प्रकार भाषा शिक्षण के लिए शिक्षण सामग्री का निर्माण एक अत्यन्त वैज्ञानिक और जटिल कार्य है । सामग्री के निर्माता को अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, भाषा शिक्षण, तथा प्रणाली विज्ञान में दक्ष तो होना ही चाहिए इस के अलावा शिक्षण के वास्तविक संदर्भ का भी अनुभव होना आवश्यक है।
शिक्षण सामग्री का प्रस्तुतीकरण भी एक विशिष्ट और जटिल पक्ष है। केवल पढ़ाई जानेवाली संरचनाओं, शब्दावलियों आदि पर ही ध्यान नहीं दिया जाता है। वरन् उस के साथ उदाहरण के लिए दिए जाने वाले चित्र, आरेख, तालिकाएँ, रेखांकन आदि भी व्यवस्थित और क्रमबद्ध किए जाते हैं।
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के क्षेत्र में शिक्षण सामग्री के सिद्धान्तों एवं उस की प्रक्रिया के बारे में पर्याप्त चिन्तन किया गया है । कक्षा अध्यापन के आधार पर किए गए शोध भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रस्तुत कृति में शिक्षण सामग्री के सभी पक्षों और आयामों पर स्पष्ट और सरल ढंग से विचार किया गया है। अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के क्षेत्र में मान्य सिद्धातों और विचारों को तो स्थान मिला ही है, शिक्षाशास्त्र एवं शिक्षण प्रणाली विज्ञान की मान्यताओं को भी ध्यान में रखा गया है। सामग्री निर्माता की सुविधा के लिए व्याख्याओं एवं उदाहरणों द्वारा विभिन्न बिन्दुओं को स्पष्ट भी किया गया है। इस प्रकार यह एक सर्वांगीण और समवेत कृति है। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रणेता ने सामग्री निर्माण के अपने दीर्घकाल अनुभव का तो उपयोग किया ही है, अधुनातन शोध को भी ओझल नहीं होने दिया है। सामग्री निर्माण के क्षेत्र में इस प्रकार की समकालिक कृति अभी नहीं मिलती। इसलिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने इस कृति के प्रकाशन का दायित्व स्वीकार किया है।
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