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Apabhransh bhasha aur vyakaran:apabhransh ka bhasha-vegyanik anusheelan

By: Material type: TextTextPublication details: Bhopal; Madhya Pradesh Hindi Grantha Akad; 1976Description: 323 pDDC classification:
  • H 491.405 PAT
Summary: "अपभ्रंशः भाषा और व्याकरण" में प्राकृत और आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की मध्यवर्ती अपभ्रंश भाषा के ऐतिहासिक विकास-क्रम के अध्ययन का प्रयत्न है भाषा का यह रूप अब कहीं प्रचलित नहीं है। अतएव इसके रूपों की पहचान का आधार लिखित साहित्य ही है। भाषा के अध्येताओं को आरंभ में बहुत कम अपभ्रंश साहित्य उपलब्ध था, किन्तु अनुसंधान का जैसे-जैसे विकास हुआ यह कमी पर्याप्त रूप में दूर हुई। अब देश या क्षेत्र भेद से अनेक ग्रंथों और ग्रंथकारों का पता लग चुका है जिससे इस भाषा के व्यापक और समन्वित रूप की कल्पना प्रस्तुत की जा सकती है। अपभ्रंश की पुरानी पोथियों का प्रकाशन अभी तक साहित्यिक अथवा धार्मिक महत्व को दृष्टि में रखकर किया गया है। स्पष्ट है, भाषा की दृष्टि से अनेक महत्वपूर्ण ऐसी पोथियाँ मिल सकती हैं, जिनका प्रथम दृष्टि में कोई महत्व न हो। पर्याप्त प्रकाशन हो जाने पर ही उनके आधार पर अपभ्रंश का स्वरूप पूर्णतया स्पष्ट होगा ।
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"अपभ्रंशः भाषा और व्याकरण" में प्राकृत और आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की मध्यवर्ती अपभ्रंश भाषा के ऐतिहासिक विकास-क्रम के अध्ययन का प्रयत्न है भाषा का यह रूप अब कहीं प्रचलित नहीं है। अतएव इसके रूपों की पहचान का आधार लिखित साहित्य ही है। भाषा के अध्येताओं को आरंभ में बहुत कम अपभ्रंश साहित्य उपलब्ध था, किन्तु अनुसंधान का जैसे-जैसे विकास हुआ यह कमी पर्याप्त रूप में दूर हुई। अब देश या क्षेत्र भेद से अनेक ग्रंथों और ग्रंथकारों का पता लग चुका है जिससे इस भाषा के व्यापक और समन्वित रूप की कल्पना प्रस्तुत की जा सकती है। अपभ्रंश की पुरानी पोथियों का प्रकाशन अभी तक साहित्यिक अथवा धार्मिक महत्व को दृष्टि में रखकर किया गया है। स्पष्ट है, भाषा की दृष्टि से अनेक महत्वपूर्ण ऐसी पोथियाँ मिल सकती हैं, जिनका प्रथम दृष्टि में कोई महत्व न हो। पर्याप्त प्रकाशन हो जाने पर ही उनके आधार पर अपभ्रंश का स्वरूप पूर्णतया स्पष्ट होगा ।

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