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Bangaru boli ka bhashashastriya adhyayan c.2

By: Material type: TextTextPublication details: Delhi; Vani; 1980Description: 247 pDDC classification:
  • H 491.4309 KHA
Summary: खड़ी बोली हिन्दी के क्रमिक विकास में इसकी जनपदीय बोलियों का बहुत बड़ा योग दान रहा है। दिल्ली के आस-पास की बोलियों और विशेषकर बांगरू ने तो इस विकास में ऐतिहासिक और अप्रतिम भूमिका निभाई है । हिन्दी की मूल प्रकृति को समझने के लिए उसकी उपभाषाओं एवं बोलियों का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। हिन्दी के विकास में बांगरू के योगदान की दृष्टि से बांगरू का अध्ययन तो और भी आवश्यक है। बांगर के ऐतिहासिक विकास पर भले ही पहले कुछ कार्य हो चुका हो, किन्तु इसके वर्णनात्मक अध्ययन पर, डॉ० शिवकुमार खण्डेलवाल की 'बाँगरू बोली का भाषा - शास्त्रीय 'अध्ययन' नामक प्रस्तुत पुस्तक, पहली और एक मात्र पुस्तक है। इसमें बाँगरू बोली की ध्वनीय, पदीय और वाक्यीय संरचना पर गहराई से विचार किया गया है। साथ ही, बांगरू के प्रत्यय, उपसर्ग, समास तथा शब्द समूह पर भी अपेक्षित विस्तार से चर्चा की गई है। इस तरह बाँगह बोली का यह एक सर्वांगीण अध्ययन है ।
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खड़ी बोली हिन्दी के क्रमिक विकास में इसकी जनपदीय बोलियों का बहुत बड़ा योग दान रहा है। दिल्ली के आस-पास की बोलियों और विशेषकर बांगरू ने तो इस विकास में ऐतिहासिक और अप्रतिम भूमिका निभाई है । हिन्दी की मूल प्रकृति को समझने के लिए उसकी उपभाषाओं एवं बोलियों का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। हिन्दी के विकास में बांगरू के योगदान की दृष्टि से बांगरू का अध्ययन तो और भी आवश्यक है।
बांगर के ऐतिहासिक विकास पर भले ही पहले कुछ कार्य हो चुका हो, किन्तु इसके वर्णनात्मक अध्ययन पर, डॉ० शिवकुमार खण्डेलवाल की 'बाँगरू बोली का भाषा - शास्त्रीय 'अध्ययन' नामक प्रस्तुत पुस्तक, पहली और एक मात्र पुस्तक है। इसमें बाँगरू बोली की ध्वनीय, पदीय और वाक्यीय संरचना पर गहराई से विचार किया गया है। साथ ही, बांगरू के प्रत्यय, उपसर्ग, समास तथा शब्द समूह पर भी अपेक्षित विस्तार से चर्चा की गई है। इस तरह बाँगह बोली का यह एक सर्वांगीण अध्ययन है ।

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