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Bhartiya Reserve Bank ka Sanchipt Itihas 1935-1981

Material type: TextTextPublication details: Pune; "Meena Hemchandra,"; 2014Description: 266 pSubject(s): DDC classification:
  • 332.1 RES
Summary: 'भारतीय रिजर्व बैंक का संक्षिप्त इतिहास' रिज़र्व बैंक द्वारा लगभग 3000 पृष्ठों में समाविष्ट तीन खंडों में प्रकाशित 'भारतीय रिजर्व बैंक के संस्थागत इतिहास का संक्षिप्त रूपांतरण है। इसमें वर्ष 1935 में बैंक का गठन होने से लेकर वर्ष 1981 तक की अवधि को शामिल किया गया है। रिजर्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर डॉ. डी सुब्बाराव ने नवंबर 2012 में कृषि बैंकिंग महाविद्यालय, पुणे में अपने दौरे के समय यह बताया था कि रिजर्व बैंक के इतिहास का संक्षिप्त और आसान सा रूपांतरण उपलब्ध होने की आवश्यकता है। उसी से प्रेरणा लेते हुए यह संक्षिप्त इतिहास लिखने की और उसके रूपांतरण की संकल्पना का जन्म हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक ने आजादी से पहले, देश के विभाजन के दौरान, आजादी के बाद तथा साथ ही योजना वर्षों के दौरान पैदा हुए कई सारे मौद्रिक और वित्तीय मुद्दों को निपटाया है। उन दिनों में जो नीतियाँ तय की गयीं और जो कार्रवाइयों की गयीं उन्होंने आर्थिक वातावरण की रूप रेखा बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जो हमारे लिए आज भी कारगर सिद्ध हो रही है। इस पुस्तक में वर्ष 1981 तक की अवधि को शामिल किया गया है और यह लगभग पूरी तरह से बैंक के आधिकारिक इतिहास पर आधारित है। पुस्तक का अंतिम हिस्सा बैंक के मौजूदा प्रकाशन 'भारतीय रिज़र्व बैंक से लिया गया है और उसमें बैंक के कामकाज के आज के स्वरूप का विहंगावलोकन प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक बैंक के इतिहास को बैंक के वर्तमान से जोड़ कर देख सकें। बैंक के कामकाज की रूपरेखा के बारे में जो तीन मूल खंड लिखे गये हैं उसी में से सामग्री लेकर यह संक्षिप्त इतिहास लिखा गया है। इन तीनों ही खड़ों से, जो आधिकारिक संस्थागत इतिहास के दस्तावेज है, सामग्री लेते समय हर संभव प्रयास किया गया है कि उसमें कोई अंतर न आए तथापि, केंद्रीय बैंक के मूल कार्यकलापों को 1 आसानी से समझाने के लिए अपने विवेकाधिकार का भी कुछ-कुछ उपयोग किया गया है ताकि इस वर्णन के लिए यथोचित परिप्रेक्ष्य दिया जा सके। सुश्री एम. रमाकुमारी, सहायक महा प्रबंधक और संकाय सदस्य ने तीन अध्यायों अर्थात 'सरकार का बैंकर", "खेतों से थाली तक' और 'मुद्रा सृजनकर्ता' से संबंधित काम को अंजाम देने में सहायता की।
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'भारतीय रिजर्व बैंक का संक्षिप्त इतिहास' रिज़र्व बैंक द्वारा लगभग 3000 पृष्ठों में समाविष्ट तीन खंडों में प्रकाशित 'भारतीय रिजर्व बैंक के संस्थागत इतिहास का संक्षिप्त रूपांतरण है। इसमें वर्ष 1935 में बैंक का गठन होने से लेकर वर्ष 1981 तक की अवधि को शामिल किया गया है।

रिजर्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर डॉ. डी सुब्बाराव ने नवंबर 2012 में कृषि बैंकिंग महाविद्यालय, पुणे में अपने दौरे के समय यह बताया था कि रिजर्व बैंक के इतिहास का संक्षिप्त और आसान सा रूपांतरण उपलब्ध होने की आवश्यकता है। उसी से प्रेरणा लेते हुए यह संक्षिप्त इतिहास लिखने की और उसके रूपांतरण की संकल्पना का जन्म हुआ।

भारतीय रिजर्व बैंक ने आजादी से पहले, देश के विभाजन के दौरान, आजादी के बाद तथा साथ ही योजना वर्षों के दौरान पैदा हुए कई सारे मौद्रिक और वित्तीय मुद्दों को निपटाया है। उन दिनों में जो नीतियाँ तय की गयीं और जो कार्रवाइयों की गयीं उन्होंने आर्थिक वातावरण की रूप रेखा बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जो हमारे लिए आज भी कारगर सिद्ध हो रही है।

इस पुस्तक में वर्ष 1981 तक की अवधि को शामिल किया गया है और यह लगभग पूरी तरह से बैंक के आधिकारिक इतिहास पर आधारित है। पुस्तक का अंतिम हिस्सा बैंक के मौजूदा प्रकाशन 'भारतीय रिज़र्व बैंक से लिया गया है और उसमें बैंक के कामकाज के आज के स्वरूप का विहंगावलोकन प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक बैंक के इतिहास को बैंक के वर्तमान से जोड़ कर देख सकें।

बैंक के कामकाज की रूपरेखा के बारे में जो तीन मूल खंड लिखे गये हैं उसी में से सामग्री लेकर यह संक्षिप्त इतिहास लिखा गया है। इन तीनों ही खड़ों से, जो आधिकारिक संस्थागत इतिहास के दस्तावेज है, सामग्री लेते समय हर संभव प्रयास किया गया है कि उसमें कोई अंतर न आए तथापि, केंद्रीय बैंक के मूल कार्यकलापों को 1 आसानी से समझाने के लिए अपने विवेकाधिकार का भी कुछ-कुछ उपयोग किया गया है ताकि इस वर्णन के लिए यथोचित परिप्रेक्ष्य दिया जा सके। सुश्री एम. रमाकुमारी, सहायक महा प्रबंधक और संकाय सदस्य ने तीन अध्यायों अर्थात 'सरकार का बैंकर", "खेतों से थाली तक' और 'मुद्रा सृजनकर्ता' से संबंधित काम को अंजाम देने में सहायता की।

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