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Bhasha vigyan

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Allahabad; Saraswati Prakashan; 1979Description: 107 pDDC classification:
  • H 410 PAN
Summary: युगों-युगों से मानव के मस्तिष्क में एक उलझन सी बनी हुई है। यह भाषा क्या है ? कैसे इसका जन्म हुआ है ? क्यों एक क्षेत्र के व्यक्तियों की भाषा दूसरे क्षेत्र के व्यक्तियों को भाषा से भिन्न होती है ? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ने भाषावैज्ञानिकों को जन्म दिया जो भाषाओं की उत्पत्ति के कारणों की खोजों की ओर अग्रसर हुये। दुनियाँ के कवियों ने प्रकृति की अपनी भाषा को वृक्षों, बादलों, जंगलो, पहाड़ों, नदियों, झरनों तथा समुद्र के माध्यम से सुना और अनुभव किया जिसे कविता के माध्यम से हम तक पहुंचाया। दुनिया के आदिम व्यक्तियों ने भी ऐसा ही सोचा था कि प्रकृति उनसे बातें करती है। उन्हें चेतावनी देती है, बराती है, हिम्मत बढ़ाती है और उनसे दोस्ती करती है। सूर्य की किरणें उन्हें बन्धरे से उजाले की ओर ले जाती है। बादलों की उन्हे ईश्वरीय नियमों को पालन करने के लिये आगाह करती है। जो भी पटता या सब ईश्वरी भाषा का प्रतिरूप था। यह सब बादिम कल्पना धीरे-धीरे मिट गई और एक ध्वन्यात्मक विचार-विनिमय के माध्यम से ज्ञान ने जन्म लिया; ओ जैवीय जगत के मानव मात्र में सीमित हो गया । यह सत्य है कि प्रकृति बोलती है, अगर हम यह स्वीकार कर लें कि हमें मिलने बोली सूचना का माध्यम उनकी विमन आवाजें और विभिन्न संकेत हैं। जैसे वृक्ष की टहनियों का झोंके के साथ हिलना आंधी आने का द्योतक है। घनघोर काले बादलों की गड़गड़ाहट तूफान जाने की पूर्व सूचना है।
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युगों-युगों से मानव के मस्तिष्क में एक उलझन सी बनी हुई है। यह भाषा क्या है ? कैसे इसका जन्म हुआ है ? क्यों एक क्षेत्र के व्यक्तियों की भाषा दूसरे क्षेत्र के व्यक्तियों को भाषा से भिन्न होती है ? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ने भाषावैज्ञानिकों को जन्म दिया जो भाषाओं की उत्पत्ति के कारणों की खोजों की ओर अग्रसर हुये।
दुनियाँ के कवियों ने प्रकृति की अपनी भाषा को वृक्षों, बादलों, जंगलो, पहाड़ों, नदियों, झरनों तथा समुद्र के माध्यम से सुना और अनुभव किया जिसे कविता के माध्यम से हम तक पहुंचाया।
दुनिया के आदिम व्यक्तियों ने भी ऐसा ही सोचा था कि प्रकृति उनसे बातें करती है। उन्हें चेतावनी देती है, बराती है, हिम्मत बढ़ाती है और उनसे दोस्ती करती है। सूर्य की किरणें उन्हें बन्धरे से उजाले की ओर ले जाती है। बादलों की उन्हे ईश्वरीय नियमों को पालन करने के लिये आगाह करती है। जो भी पटता या सब ईश्वरी भाषा का प्रतिरूप था। यह सब बादिम कल्पना धीरे-धीरे मिट गई और एक ध्वन्यात्मक विचार-विनिमय के माध्यम से ज्ञान ने जन्म लिया; ओ जैवीय जगत के मानव मात्र में सीमित हो गया ।
यह सत्य है कि प्रकृति बोलती है, अगर हम यह स्वीकार कर लें कि हमें मिलने बोली सूचना का माध्यम उनकी विमन आवाजें और विभिन्न संकेत हैं। जैसे वृक्ष की टहनियों का झोंके के साथ हिलना आंधी आने का द्योतक है। घनघोर काले बादलों की गड़गड़ाहट तूफान जाने की पूर्व सूचना है।

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