Hindi vividh vyvaharon ki bhasha (Record no. 52213)
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 8170553342 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H 491.43 KUM |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Kumar, Suvas |
245 #0 - TITLE STATEMENT | |
Title | Hindi vividh vyvaharon ki bhasha |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | New Delhi |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Name of publisher, distributor, etc. | Vani Prakashan |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Date of publication, distribution, etc. | 1994 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 180 p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्नातकोत्तर स्तर पर प्रयोजनमूलक हिन्दी, अनुवाद और पत्रकारिता के विषयों को पढ़ाने के लिए लगभग सभी राज्यों के एक-दो विश्वविद्यालयों से आग्रह किया है और अनेक विश्वविद्यालयों में इन विषयों की पढ़ाई आरंभ भी हो गयी है। इन विषयों में यद्यपि पुस्तकों की बाढ़ आयी हुई है, पर अच्छी पुस्तकों का अभाव अखरता है । कतिपय भाषावैज्ञानिक सिद्धान्त और सूत्र, अनुवाद के नियम आदि रटकर परीक्षाएँ तो पास कर ली जा सकती हैं, परन्तु यह यांत्रिक तौर तरीका व्यावहारिक क्षेत्र में उतरने पर घातक भी सिद्ध हो सकता है<br/><br/>सुपरिचित साहित्यकार और सम्बद्ध विषय के विद्वान लेखक डॉ० सुवास कुमार की यह पुस्तक ऐसे ही तमाम खतरों को सामने रखते हुए तैयार की गयी है । दूसरे शब्दों में यह पुस्तक सामान्य पाठ्य पुस्तकों वाली प्रचलित सरलीकृत और पिष्टपेषित पद्धति से किंचित हटकर लिखी गयी है, जिससे प्रयोजनमूलक हिन्दी और अनुवाद विषय के छात्रों के लिए ही नहीं, सामान्य पाठकों के उपयोग की भी हो सकती है। छात्रों को मौलिकता प्रदर्शन का अवकाश दिया जाए तथा उनमें आलोचनात्मक दृष्टि का विकास हो, यह विगत ढाई दशकों से एक अध्यापक के रूप में लेखक का काम्य रहा है। विडम्बना यह है कि आजीविकोन्मुख तथा तोतारतवाली शिक्षा-पद्धति में यह कामना शुभेच्छा मात्र बनकर रह जाती है। फिर भी इस मामले में नकारात्मक सोच और हताशा की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। हम भले ही नव स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मैकाले के सुदृढ़ गढ़ को तोड़ने में अक्षम सिद्ध हुए हों, पर बन्द दिमागवाली अपनी कंदी नियति के बारे में तो सोच ही सकते है। इस तरह से सोचने का भी अपना रचनात्मक महत्व है। इसलिए यह पुस्तक पाठकों को भारत की भाषा-समस्या, भारतीय भाषाओं की स्थिति हिन्दी के वर्तमान और भविष्य आदि के सम्बन्ध में स्वतंत्र पूर्ण से सोचने की दिशा में निश्चय ही करेगी। |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Home library | Current library | Shelving location | Date acquired | Total checkouts | Full call number | Barcode | Date last seen | Price effective from | Koha item type |
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Not Missing | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2020-02-04 | H 491.43 KUM | 65123 | 2020-02-04 | 2020-02-04 | Books |