Angrezi bhasha ka vikas evam vistar (Record no. 52194)
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fixed length control field | 04185nam a2200181Ia 4500 |
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
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008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
fixed length control field | 200204s9999 xx 000 0 und d |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H 421 MOT |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Moti, Babu |
245 #0 - TITLE STATEMENT | |
Title | Angrezi bhasha ka vikas evam vistar |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | New Delhi |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Name of publisher, distributor, etc. | Bhartiya Anuwad Parishad |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Date of publication, distribution, etc. | 1992 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 88 p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दी का प्रयोग पिछले एक हजार वर्ष से निर्वाध चला आ रहा है हिन्दी के लोक संचरण में राज्य व्यवस्थाओं और राजनीति ने बाधाएँ उत्पन्न कीं परन्तु लोकमानस ने उन्हें बारंबार खारिज किया है। मुगलों के आधिपत्य से पूर्व भारत में जिस भाषा एवं लिपि का विकास तथा प्रचार हो रहा था वह प्राकृतों एवं जनबोलियों के लिए इसलिए स्वीकार की जा रही थी कि लोक प्रचार के लिए वह उपयोगी एवं भारतीय भाषाओं की व्याकरण सम्मत अनुकूलताओं के निकट थी तथापि भारतीय भाषाओं और भारतीय जनों के बीच प्राकृतिक रूप से विकसित होने वाली हिन्दी भाषा एवं लिपि को अनेक प्रकार के अवरोधों का सामना करना पड़ रहा है ।<br/><br/>डॉ. मोती बाबू तथा श्रीमती उषा अग्रवाल द्वारा लिखित प्रस्तुत पुस्तक अंग्रेजी भाषा के विकास एवं विस्तार के अनेक बिन्दुओं का स्पर्श करती है । यह पुस्तक भाषाओं के अध्येताओं के लिए अत्यंत उपयोगी है, इस अर्थ में भी कि जो भाषा 16वीं शताब्दी में अक्षम और अविकसित मानी जाती थी, वह ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आज एक अग्रणी भाषा के पद पर विराजमान है । वास्तव में अंग्रेजी के प्रचार-प्रसार के लिए जो विधियाँ अपनायी गयी हैं, वे साम्राज्यवादी चाह का हिस्सा भले ही रही हों किन्तु आज जब हम किसी एक संपर्क भाषा के संदर्भ में भारत की तस्वीर देखते हैं तो हमें स्पष्ट हो जाता है कि यह हमारी प्रजातांत्रिक आकांक्षा का भी एक हिस्सा है 1 इसलिए अनिवार्य है कि हमारी भारतीय भाषाएँ नैसर्गिक रूप से पल्लवित हो सकें। इसके लिये हमें भाषा का वह प्रतिदर्श सामने रखना होगा जिसके आधार पर यह स्पष्ट हो कि भाषा के विकास एवं विस्तार में आने वाली बाधाओं पर किस प्रकार विजय प्राप्त की जा सकती है। |
700 ## - ADDED ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Aggrawal, Usha |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Home library | Current library | Shelving location | Date acquired | Total checkouts | Full call number | Barcode | Date last seen | Price effective from | Koha item type |
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Not Missing | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2020-02-04 | H 421 MOT 2nd ed. | 65101 | 2020-02-04 | 2020-02-04 | Books |