Meera_Kool (Record no. 358590)
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003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
control field | OSt |
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008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789362874696 |
040 ## - CATALOGING SOURCE | |
Transcribing agency | AACR-II |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H 891.43 SIG |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Sigtia, Alka Aggrawal |
9 (RLIN) | 11466 |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Meera_Kool |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | New Delhi |
Name of publisher, distributor, etc. | Vani |
Date of publication, distribution, etc. | 2025 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 142p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | अलका अग्रवाल की व्यंग्य कहानियों का यह एक परिपक्व और भविष्य की ओर क़दम बढ़ाता दिलचस्प संग्रह है। इसमें कुल बाईस शीर्षक हैं, जो दो हज़ार के बाद के भारत का एक कोलाज बनाते हैं। ये बिल्कुल नये और आधुनिक विषयों को समेटे हैं। जिस रूप में हिन्दी में आज व्यंग्य उपस्थित हुआ है, वह सम्भवतः पहली बार एक नयी विधा का रूप बना रहा है, उसे अभूतपूर्व प्रतिष्ठा हासिल हुई है। अलका अग्रवाल ने प्रारम्भ से ही हरिशंकर परसाई के मार्ग को चुना है। उनकी सोच और अभिव्यक्ति में व्यंग्य की धारा है। लेख, कहानी, शोध सभी रूपों में उन्होंने व्यंग्य-मार्ग की राह पकड़ी है और उसे अग्रसर करने, आधुनिक बनाने का काम किया है। यह बात इसलिए उल्लेखनीय है कि जब पश्चिम में व्यंग्य विधा का जो एक सघन और लम्बा इतिहास है, हिन्दी में वह एक टूटी-फूटी रेखा है। अनेक बड़े-छोटे उदाहरण हैं, वे छिन्न-भिन्न हैं। अब नये सिरे से देखें तो आज परसाई की तरह व्यंग्य लेखन में अलका अग्रवाल सम्पूर्णता के साथ अपने को ढाल रही हैं। परसाई अगर क्लासिक हैं तो अलका अग्रवाल अभी समकालीन और अधुनातन हैं। सुरेन्द्र चौधरी मानते हैं कि सामान्य रूप से व्यंग्य, कहानी की ही विधा है, उसकी ही गली है। अलका अग्रवाल की इन कहानियों में व्यंग्यात्मक भंगिमाएँ (Irotic Temper) ज़बरदस्त रूप से अभिव्यक्त हुई हैं। उनके कई शीर्षक देखिए : ‘लैंडिंग ऑफ़ मीरा ऑन अर्थ', ‘साईं इतना दीजिए...बी.एम.डब्ल्यू. आये’, ‘होंठों पर मुहब्बत के फ़साने नहीं आते', 'ई है इंडिया हमरी जान', और 'एकोहम, बाक़ी सब वहम'। जहाँ तक मुझे याद है अलका अग्रवाल की प्रारम्भिक रचनाओं में विषय स्थानीय थे और उनका कलात्मक वैभव इतना सशक्त नहीं था। अब वे विषय भी नये चुन रही हैं, शैली में निखार भी आ रहा और कला की ऊँचाई भी कहानियों में बढ़ रही है। इसके अलावा उनकी युग-बोधक चेतना में पंख लग रहे हैं। अलका अग्रवाल के संग्रह के व्यंग्यों में आप कहानियाँ पढ़ सकते हैं, पढ़ हालाँकि ये कहानियाँ अभी परसाई की क्षमता के पास नहीं पहुँच सकी हैं। चूँकि अलका अग्रवाल लगातार लेखन कर रही हैं, इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि वे आज देश की जैसी रक्तरंजित और हिंसक अवस्था है, उसका बेहतर लेखन भविष्य में करेंगी। अलका अग्रवाल को छोटे से बड़े होते मैंने देखा है, इसलिए मेरी शुभकामनाएँ सदैव उनके साथ हैंI |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Literature-Hindi |
9 (RLIN) | 11467 |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | Books |
Date last seen | Total Checkouts | Full call number | Barcode | Price effective from | Koha item type | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Withdrawn status | Home library | Current library | Date acquired | Cost, normal purchase price |
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2025-07-02 | H 891.43 SIG | 180735 | 2025-07-02 | Books | Not Missing | Dewey Decimal Classification | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2025-07-02 | 425.00 |