Lokasahitya ka koprakash: siddhant evam vyavahar (Record no. 358118)
[ view plain ]
000 -LEADER | |
---|---|
fixed length control field | 04663nam a22002177a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
control field | OSt |
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
control field | 20250423105238.0 |
008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
fixed length control field | 250423b |||||||| |||| 00| 0 eng d |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789362874115 |
040 ## - CATALOGING SOURCE | |
Transcribing agency | AACR-II |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H 891.4 MIS |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Misher, Harishchandra |
9 (RLIN) | 10149 |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Lokasahitya ka koprakash: siddhant evam vyavahar |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | New Delhi |
Name of publisher, distributor, etc. | Vani |
Date of publication, distribution, etc. | 2024 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 389p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | औसत बुद्धि लोक और शास्त्र को परस्पर विरोधी के रूप में देखती है। लोक में क्या नहीं आता? ‘समस्त' है लोक में, यहाँ तक कि ‘इहलोक' और ‘परलोक' भी। नागरता के अभिमान का चश्मा भाषा के मूल स्रोत को अमेरिकी ‘फोक’ के रूप में देखता है। इसीलिए उसकी समझ में भाषाओं के विकास की यह प्रक्रिया नहीं आती कि जब साहित्य की भाषा अपने समय की चेतना का वाहक बनने का सामर्थ्य खो देती है तब रचनाकार लोकभाषा के शब्दों की ओर आकृष्ट होते हैं। वे शब्द लोकसंवेदना से प्रत्यक्ष रूप में जुड़े होते हैं, इसीलिए साहित्य में स्वीकृत होते चले जाते हैं। दो-ढाई सौ वर्षों के बाद यही प्रक्रिया पुनः घटित होती है। यही भाषाओं के विकास की प्रक्रिया है। —रामदेव शुक्ल ★★★ आज समग्र यूरोप और अमेरिकाव्यापी लोकसाहित्य का जो इतना व्यापक अनुशीलन दिखाई देता है, उसके मूल में भी वृन्दावन गाँव के विछोह की वेदना है। किन्तु नागरिक समाज में लोकसाहित्य के प्रति जो अनुराग दिखाई दिया है, वह वैज्ञानिक दृष्टिभंगी द्वारा नियन्त्रित नहीं है। इसीलिए इसमें थोड़ी-थोड़ी कृत्रिमता आ गयी है। संहत सामाजिक जीवन द्वारा निर्वासित होने के कारण नागरिक समाज की समष्टि या समाज के सम्बन्ध में और कोई दायित्व नहीं रह जाता। लोकसाहित्य का क्रम विकास एक विशिष्ट धारा के भीतर से सम्भव हुआ है। उस धारा के साथ ग्राम्य समाज परिचित था। यहाँ तक कि एक प्रकार से कहा जा सकता है कि वह धारा ग्राम्य संहत सामाजिक जीवन में ही निहित थी। किन्तु उसके साथ नागरिक समाज से परिचित होने की बात होती है। उसी कारण लोकसाहित्य किसी-किसी क्षेत्र में एक प्रकार से नागरिक रूप प्राप्त कर सका है। कहना न होगा कि इसी कारण अनेक क्षेत्रों में ही यह कृत्रिम मालूम होने लगा है। जो लोक लोकसाहित्य की आलोचना करते रहते हैं, वे भी अनेक समय लोकसाहित्य की रचना करने के लिए दायी होते हैं। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Literature-Hindi |
9 (RLIN) | 10150 |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Modern Indic Literature- Loksahitya |
9 (RLIN) | 10151 |
710 ## - ADDED ENTRY--CORPORATE NAME | |
Corporate name or jurisdiction name as entry element | Sao, Pawan ed. |
9 (RLIN) | 10152 |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | Books |
Date last seen | Total Checkouts | Full call number | Barcode | Price effective from | Koha item type | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Withdrawn status | Home library | Current library | Date acquired | Cost, normal purchase price |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
2025-04-23 | H 891.4 MIS | 180756 | 2025-04-23 | Books | Not Missing | Dewey Decimal Classification | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2025-04-23 | 995.00 |