Santaliaa aur santal (Record no. 356971)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 05156nam a22002177a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field OSt
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20241023095848.0
008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION
fixed length control field 241023b |||||||| |||| 00| 0 eng d
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9789360862602
040 ## - CATALOGING SOURCE
Transcribing agency AACR-II
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 305.56 MAN
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Man, E. G.
9 (RLIN) 6775
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Santaliaa aur santal
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. New Delhi
Name of publisher, distributor, etc. Rajkamal
Date of publication, distribution, etc. 2024
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 126p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. ‘सन्तालिया और सन्ताल’ पश्चिमी कैनन के बाहर की संस्कृतियों और समाजों के प्रति एक पाश्चात्य लेखक के आकर्षण का अनूठा परिणाम है। ई. जी. मन ने राजमहल पहाड़ियों की तलहटी से लेकर बीरभूम, बर्दवान, मिदनापुर और कटक में अवस्थित विन्ध्य की दक्षिण-पूर्वी पर्वतमाला तक फैले क्षेत्र को ‘सन्तालिया’ अर्थात सन्ताल-भूमि कहा है, जिसे तब सन्ताल परगना के नाम से जाना जाता था, जहाँ वे सहायक आयुक्त के रूप में कार्यरत रहे थे। उनकी बौद्धिक जिज्ञासा, भारत के स्वदेशी समुदायों खासकर आदिवासी सन्ताल-समूह से सहानुभूतिपूर्ण जुड़ाव ने उन्हें सन्ताल-जीवन की पेचीदगियों, उनके रीति-रिवाजों, विश्वासों, कथा-किंवदन्तियों, गीत-संगीत और जमीन से उनके सहजीवी सम्बन्धों को गहराई से समझने का अवसर दिया। मन ने इस पुस्तक में सन्तालों के जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके जीवन के तमाम पक्षों का वर्णन किया है। उन्होंने इन आदिम लोगों को सहज, सरल, ईमानदार और सच बोलने वाला पाया, जिनका जीवन इन गुणों के बावजूद नशे और अन्धविश्वास की दोहरी बुराइयों से पीड़ित था। उन्होंने सन्तालों द्वारा घने जंगलों को साफ कर खेती के लिए जमीन निकालने और उनकी जमीनों को हड़प लेने वाले बंगाली महाजनों के प्रति उनकी सतर्कता का विवरण भी दिया है। ऐतिहासिक सन्ताल-विद्रोह और सन्तालों के बीच ईसाई मिशनरियों के कार्यों का पर्याप्त उल्लेख भी इस पुस्तक में किया गया है। इन विवरणों में सचाई के प्रति लेखक का आग्रह इस हद तक स्पष्ट है कि वह विद्रोह के लिए सन्तालों पर उंगली उठाने के बजाय महाजनों की लोलुपता और धूर्तता तथा व्यवस्था में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को रेखंकित करता है। वस्तुतः सिर्फ मानववैज्ञानिक ब्योरों से परे, यह पुस्तक परम्परा और आधुनिकता के दोराहे पर खड़े लोगों की आकांक्षाओं और उनके आगे बढ़ने की राह के अवरोधों को दर्शाती है। साथ ही परिवर्तन के मुहाने पर पहुँच चुकी एक संस्कृति की सूक्ष्म समझ प्रदान करती है। सन्देह नहीं कि अपने एन्साइक्लोपीडिक विस्तार और दुर्लभ प्रामाणिकता के कारण यह पुस्तक स्थायी महत्त्व प्राप्त कर चुकी है।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Socialism
9 (RLIN) 6776
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Schedule Tribes- Santal and Santalia
9 (RLIN) 6777
710 ## - ADDED ENTRY--CORPORATE NAME
Corporate name or jurisdiction name as entry element Ranendra,,, [et.al.] ed.
9 (RLIN) 6778
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
Koha item type Books
Holdings
Date last seen Total Checkouts Full call number Barcode Price effective from Koha item type Lost status Source of classification or shelving scheme Damaged status Not for loan Withdrawn status Home library Current library Date acquired Cost, normal purchase price
2024-10-23   H 305.56 MAN 180305 2024-10-23 Books Not Missing Dewey Decimal Classification Not Damaged     Gandhi Smriti Library Gandhi Smriti Library 2024-10-23 495.00

Powered by Koha