Kans (Record no. 356810)
[ view plain ]
000 -LEADER | |
---|---|
fixed length control field | 05321nam a22002057a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
control field | OSt |
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
control field | 20241014122355.0 |
008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
fixed length control field | 241014b |||||||| |||| 00| 0 eng d |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789357758291 |
040 ## - CATALOGING SOURCE | |
Transcribing agency | AACR-II |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H MOR B |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Morwal, Bhagwandas |
9 (RLIN) | 6294 |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Kans |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | New Delhi |
Name of publisher, distributor, etc. | Vani |
Date of publication, distribution, etc. | 2024 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 247p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | काँस ग्रामीण जीवन के आधुनिक चितेरे भगवानदास मोरवाल का ग्यारहवाँ उपन्यास है। इनके पूर्व के उपन्यासों की तरह यह उपन्यास भी भारतीय समाज की जनपदीय गन्ध और लोक-संस्कृति को अपने आप में समाहित किये हुए है। उत्तर भारत के एक राज्य हरियाणा के सबसे पिछड़े ज़िले मेवात अर्थात स्वतन्त्रता पूर्व के पुराने गुड़गाँव ज़िले के मेव समुदाय के लिए बने, मर्दवादी क़ानून की भोथरी धार से लहूलुहान होती चाँदबी, जैतूनी, जैनब, शाइस्ता, समीना, अरस्तून जैसी अनेक धरती-पुत्रियों का इसमें रह-रहकर चीत्कार सुनाई देगा । यह उपन्यास भारतीय समाज के उन. अन्तर्विरोधों पर गहरी चोट करता है, जो रिवाज़े-आम अर्थात कस्टमरी लॉ जैसे अमानुषिक और बर्बर कानूनों के चलते आधुनिक एवं सभ्य कहे जाने वाले समाज में और गहरे होते जा रहे हैं। भारत के अनेक राज्यों की तरह, एक समुदाय में प्रचलित ऐसा क़ानून जिसे न केवल वैधानिकता प्राप्त है, बल्कि आज़ाद भारत में उसका इस्तेमाल उसी के संविधान के विरुद्ध खुलेआम हो रहा है। भारतीय समाज के बहुत से आदिम क़ानूनों की तरह, जिनके आगे न शास्त्र की चलती है, न शरा की, उन्हीं में से यह रिवाज़े-आम ऐसा ही क़ानून है। यदि चलती है तो सिर्फ़ उस विधान की जो स्त्री को केवल और केवल दूसरे दर्जे का नागरिक मानने में यक़ीन करता है। जिस देश का संविधान स्त्री को, उसके अधिकारों की रक्षा का वचन देता है, और जिसकी नज़र में हरेक नागरिक को समानता का अधिकार प्राप्त है, उसी देश की अनगिनत बेटियों को इस क़ानून की आड़ में पैतृक सम्पत्ति से वंचित कर, जिस तरह उन्हें दर-दर की ठोकर खाने पर विवश होना पड़े-क्या यह न्याय संगत है? यह उपन्यास अपनी ही धरती-पुत्रियों की राह में उनके पालनहारों द्वारा उनकी राह में बिछाये जाने वाले क़ानूनी काँटों, और उनसे पैदा होते मर्मान्तक कष्टों का एक ऐसा दुर्दम्य आख्यान है, जिससे गुज़रना मानो अपने ही असहनीय दुःखों से गुज़रना है। यह केवल चाँदबी, जैतूनी, जैनब, शाइस्ता, समीना, अरस्तून की कहानी नहीं है, बल्कि इन जैसी अनेक दुहिताओं की कहानी है, जो आज भी भारतीय समाज में काँस की तरह किसी अनचाही घास से कम नहीं हैं। एक ऐसी अनचाही घास जो चौमासे के बाद धरती की सख़्त देह को फोड़ अपने आप उग आती है। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Novel- Hindi |
9 (RLIN) | 6295 |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Upnayas |
9 (RLIN) | 6296 |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | Books |
Date last seen | Total Checkouts | Full call number | Barcode | Price effective from | Koha item type | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Withdrawn status | Home library | Current library | Date acquired | Cost, normal purchase price |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
2024-10-14 | H MOR B | 180449 | 2024-10-14 | Books | Not Missing | Dewey Decimal Classification | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2024-10-14 | 495.00 |