Chuka bhi hun main nahin (Record no. 354582)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 04728nam a22002057a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field OSt
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20240221092857.0
008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION
fixed length control field 240218b |||||||| |||| 00| 0 eng d
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788183618618
040 ## - CATALOGING SOURCE
Transcribing agency AACR-II
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number SA 891.432 SIN
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Singh, Shamsher Bahadur
9 (RLIN) 824
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Chuka bhi hun main nahin
250 ## - EDITION STATEMENT
Edition statement 4th ed.
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Delhi
Name of publisher, distributor, etc. Radhakrishan
Date of publication, distribution, etc. 2019
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 143p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. शमशेर बहादुर सिंह की कविता एक विलक्षण संसार की रचना करती है जिसमें आपको अपनी नहीं उसकी शर्तों पर जाना होता है। इस कविता को आप चलते-जाते ऐसे ही नहीं पढ़ सकते, यह कविता अपने काठिन्य से नहीं, जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं, बल्कि अपनी अद्वितीयता से आपको पढऩे की आपकी कंडीशंड आदतों से छूटकर वापस नए सिरे से सावधान होने को कहती है। यह शमशेर का उस दौर में आया संग्रह है जब कवि के रूप में उनका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण हो चुका था। इससे पहले उनकी ‘कुछ कविताएँ’, ‘कुछ और कविताएँ’, और ‘इतने पास अपने’ जैसे संकलन आ चुके थे और हिन्दी कविता की दुनिया में उन्हें लेकर पक्ष-विपक्ष बन चुका था। इसलिए यह संग्रह और भी महत्त्वपूर्ण है, हालाँकि जिस तरह उनके पहले कविता-संग्रह के लिए कविताओं का चयन जगत् शङ्खधर ने किया था, इस किताब में भी चयन उन्हीं का रहा, अर्थात् अब तक अपनी कविता को लेकर उनका संकोच जस का तस था। इस संग्रह की भूमिका में भी वे कहते हंै—‘अपनी काव्य-कृतियाँ मुझे दरअसल सामाजिक दृष्टि से कुछ बहुत मूल्यवान नहीं लगतीं। उनकी वास्तविक सामाजिक उपयोगिता मेरे लिए एक प्रश्नचिह्न-सा ही रही है, कितना ही धुँधला सही।’ अपने काव्य-कर्म को लेकर उनके इसी संशय ने शायद उन्हें भाषा और शिल्प के उस मानक तक पहुँचाया जिसे उनके जीते-जी ही ‘शमशेरियत’ कहा जाने लगा था, और उन्हें ‘कवियों का कवि’। बकौल नामवर सिंह, ‘शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का जो एक प्रभावशाली भवन अपने हाथों तैयार किया है, उसमें जाने से मुक्तिबोध को भी डर लगता था—उसकी गम्भीर प्रयत्नसाध्य पवित्रता के कारण।’ और बकौल मलयज, ‘एक नितान्त निजी मुहावरा अपने पवित्र दर्प में तना हुआ।’ बहरहाल ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का यह संस्करण हिन्दी की नई पीढ़ी को एक आमंत्रण के रूप में प्रस्तुत है कि वह भी अपने इस पूर्वज, और कविता-परम्परा के श्रेष्ठतम पैमानों में से एक, कवि की कविताओं को जाने।.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Literature- Hindi; Poems; Sahitya Akademi Awarded kriti
9 (RLIN) 825
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
Koha item type Books
Holdings
Withdrawn status Lost status Source of classification or shelving scheme Damaged status Not for loan Home library Current library Date acquired Cost, normal purchase price Total checkouts Full call number Barcode Date last seen Price effective from Koha item type
  Not Missing Dewey Decimal Classification Not Damaged   Gandhi Smriti Library Gandhi Smriti Library 2024-02-18 395.00   H 891.432 SIN 169269 2024-02-18 2024-02-18 Books

Powered by Koha