Rajasthan swadhinta sangram ke sakshi: (Swatntrta senaniyon k sansmaran pr aadharit) Hadoti aanchal-Kota, Bundi, Jhalawar (Record no. 346814)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 14530nam a22001937a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field 0
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20220712201742.0
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number RJ 320.540922
Item number RAJ
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Khargawat, Mahendra (ed.)
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Rajasthan swadhinta sangram ke sakshi: (Swatntrta senaniyon k sansmaran pr aadharit) Hadoti aanchal-Kota, Bundi, Jhalawar
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Bikaner,
Name of publisher, distributor, etc. Rajasthan rajya abhilekhagar
Date of publication, distribution, etc. 2007.
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 164 p.
500 ## - GENERAL NOTE
General note Jan aamndolan granth mala : Chaturth pushp
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर के तत्वाधान में मौखिक इतिहास संदर्भ संकलन के अन्तर्गत राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण ध्यनिबद्ध किए गए और प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ हुआ इस योजना का चतुर्थ पुष्प "स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण-हाडौती अंगल (कोटा बूंदी और झालावाड) सेवा में प्रस्तुत है।<br/><br/>इस पुस्तक के संस्मरण राजस्थान राज्य अभिलेखागार में संकलित ध्वनिबद्ध संस्मरणों के आधार पर है। योजनानुसार वक्ता ने जो भी कहा, उसे कैसेट में टेप कर लिया गया। चूँकि यह संकलन आपसी बातचीत के रूप में है। वक्ता भी वय प्राप्त सेनानी है। अतः टेप की गई वार्ता में अवस्था के कारण उच्चारण दोष या विस्मृति आदि, शारीरिक अस्वस्थतावश या उत्साहवश विषय और घटना का क्रमबद्ध न होना, एक घटना या विषय के साथ दूसरे विषय या घटना को बताने लगना, लोगों के नाम मूल जाना, स्थानीय शब्दों का प्रयोग करना या किसी बात को बारम्बार दुहराने लगना आदि सम्मिलित हैं। इसे सुनने का अपना एक अलग महत्व भी है। पूर्व में इन्हें ज्यों का त्यों प्रकाशन में भी रखा गया, किन्तु इस पुस्तक के सम्पादन में यह विचार किया गया कि यदि वक्ता के वक्तव्य के तथ्य को उसकी भावना को उसी प्रकार रखकर संस्मरणों को घटना और विषय के क्रम से तथा भाषा को परिमार्जित करके सहृदयों के समक्ष प्रस्तुत किया जाये तो रोचकता के साथ इतिहास क्रमबद्ध रूप में सामने आएगा, जो शोघादि दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण होगा। फलस्वरूप हाड़ौती क्षेत्र- कोटा बूंदी और झालावाड़ के ध्वनिबद्ध संस्मरणों के टंकित गद्य को बारम्बार पढ़कर, उन्हें सुव्यस्थित करके सहृदयों के समक्ष प्रस्तुत करने का विनम्र सा प्रयास किया गया है। इनमें वक्ता के तथ्य और भावना में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में उपर्युक्त गतिविधियों के कर्त्ता और हाड़ौती अंचल के 22 स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण दिए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में के कुछ सेनानियों के संस्मरण अभी भी अपेक्षित हैं। इनकी उपलब्धि विभागीय प्रयास का साकल्य होगा और आगामी श्रृंखला में इनका प्रकाशन उद्देश्य की पूर्ति होगी। प्रस्तुत संस्मरणों में कोटा के 14 स्वतंत्रता सेनानी हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं- श्री बागमल बांठिया, श्री अभिन्न हरि, श्री कवरलाल जेलिया, श्री मोतीलाल जैन, श्री राम गोपाल गौड़, श्री भैरवलाल काला बादल, श्री हीरालाल जैन, श्री गुलाबचन्द शर्मा, श्री कुन्दनलाल चोपड़ा, श्री रामेश्वर दयाल सक्सेना, श्री इन्द्रदत्त स्वाधीन, श्री विमल कुमार कंजोलिया, श्री टीकम चन्द जैन और श्री दुर्गा प्रसाद याज्ञिक । इस पुस्तक में संग्रहित स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण प्रत्येक सेनानी की निजी विशिष्टताओं को भी प्रकट करते हैं। ये स्वतंत्रता सेनानी कई दृष्टियों से कई क्षेत्र में अग्रणी थे। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पदों के दायित्व का वहन किया। श्री बागमल बांठिया ने श्रमिक राजनीति और लेखन में विशिष्ट भूमिका निभाई। अभिन्न हरि जी उत्तम कोटि के लेखक थे। कंवर लाल जेलिया का जागीरदार प्रथा उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण योगदान था। श्री मोतीलाल जैन ने लेखन के साथ विभिन्न | समितियों का नेतृत्व किया। श्री राम गोपाल गौड़ ने वाचनालय की स्थापना और समाचार पत के माध्यम से गांव तहसील आदि स्थानों पर भी जाग्रति पैदा की। भैरवलाल काला बादल उच्च कोटि के कवि थे। इन्होंने बन्ने बनड़ियों और भजन के माध्यम से देश-प्रेम के गीत गाकर अनूठे रूप में जन-जन में देश-प्रेम की भावना जाग्रत की। श्री हीरालाल जैन ने उत्तरदायी शासन की मांग में अहम भूमिका निभाई। श्री गुलाबचन्द शर्मा ने आन्दोलन मे भोजन नायक से लेकर प्रत्येक भूमिका निभाई। श्री कुन्दनलाल चोपड़ा ने हरिजन उद्धार में सक्रिय रूप से भाग लिया। श्री रामेश्वर सक्सेना ने आजादी के लिए संघर्ष के साथ सामाजिक कुरीतियां दूर करने के लिए निरन्तर कार्य किया, यथा- बाल-विवाह, विधवा-विवाह, हरिजनोद्धार आदि। श्री इन्द्रदत्त स्वाधीन ने जेल की कोठरी में यातनायें सहने के साथ जेल से बाहर रहकर अपने साथियों के परिवार की देखभाल और बुलेटिन, समाचार पत्र प्रकाशन की जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने तत्कालीन इतिहास सुरक्षित रखा। श्री विमल कुमार कंजोलिया ने लेवी के विरोध में उस समय 151.00 की राशि प्रदान की तथा अनेक साहसी कार्य यथा ज्याला प्रसाद शर्मा को इन्दौर पहुचाना या महात्मा गांधी के अस्थि विसर्जन का कार्य आदि किए। टीकम चन्द जैन ने लेखन से जागृति की। दुर्गा प्रसाद याशिक स्वयं तो सेनानी थे ही, इनका पुत्र भी पाँच वर्ष अल्पायु में ही देशभक्ति के गीत गाता था। बूंदी के से बाहर पढ़ाई का व्यय वहन कर रहे थे किन्तु उन्होंने पण्डित ब्रज सुन्दर शर्मा के सम्पर्क में आने के बाद देश के लिए कार्य करने को ही अपना लक्ष्य चुना । इनके पिता की सदमे से मृत्यु भी हो गई, पर ये अपने कर्तव्य पर अडिग रहे। उन्होंने अनेक स्थानों पर नेतृत्व करते हुए एक सच्चे सेनानी का कर्त्तव्य पूर्ण किया।<br/><br/>कुंज बिहारी लाल ओझा ने विद्यार्थी संगठन द्वारा क्रांति की अलख जगाई। ये लिथो मशीन से अनेक पत्र प्रकाशित करके वितरित करते थे। इन्होंने अनेक कष्ट सहे। इन्हें क्रोसबार भी पहनाया। गया। श्री अभय कुमार पाठक ने अंग्रेज दीवान रॉर्बट्सन की कई योजनाओं को धराशायी कर दिया। इन्होंने जेल में असह्य कष्ट सहकर भी कार्य किया। हाड़ौती संदेश समाचार पत्र भी निकाला। श्री गोपीलाल शर्मा ने भी अंग्रेजों से खूब टक्कर ली। समाज द्वारा यहां तक कहा गया के ये योग्य पिता के अयोग्य, निकम्मे, पागल, सनकी पुत्र हैं, तथापि ये अपने उद्देश्य पर डटे रहे। उन्होंने नागपुर, बिहार, बंगाल, उड़ीसा आदि सभी स्थानों की यात्रायें की। श्री ब्रज सुन्दर शर्मा स्कृत विद्वानों के परिवार से थे। उन्होंने बूंदी में पुस्तकालय स्थापना के साथ अंग्रेज और राजा<br/><br/>अत्याचारों, निरंकुशता और अनुचित नीतियों का निरन्तर यथासम्भव विरोध किया। झालावाड़ के मांगीलाल भव्य बचपन से ही अकेले थे। ये अच्छे लेखक एवं शिक्षक थे। होंने हरिजनो के लिए बहुत कार्य किया। श्री छोगमल पोद्दार प्रजामण्डल के सक्रिय सदस्य रहे।<br/><br/>मदनलाल शाह भी प्रजामण्डल में सक्रिय रहे। इन सभी के संस्मरण निश्चय ही तत्कालीन इतिवृत्त एवं स्थिति के महत्त्वपूर्ण उपक्रम तो होंगे ही, शोद्यार्थी एवं जिज्ञासुओं के लिए निश्चय ही उपयोगी तथा आगन्तुक पीढ़ी के र्शन के स्थायी स्तम्भ होंगे।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Memories of freedom fighters
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Rajaesthan, India
700 ## - ADDED ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Goswami, Usha (ed.)
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Donated Books
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