Doobhti Tehri ki aakhri kavitaye (Record no. 346675)
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003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
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005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789386452467 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | UK 891.431 DOO |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Saklani, Hemchandra (ed.) |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Doobhti Tehri ki aakhri kavitaye |
250 ## - EDITION STATEMENT | |
Edition statement | 3rd. |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | Dehradun, |
Name of publisher, distributor, etc. | Samya sakshay |
Date of publication, distribution, etc. | 2017. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 197 p. |
500 ## - GENERAL NOTE | |
General note | Bi-Lingual edition. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | ब्रह्मा जी ने नहीं, मानव ने सन् 1949 से जो जन्म कुण्डली टिहरी की बनानी शुरू की थी, उसके ग्रह 1965 के बाद बहुत तेजी से सक्रिय हुए। उनके अनुसार टिहरी को डूबना ही था। अन्ततः जलाशय, समय तथा इतिहास के गर्भ में, दफन होकर टिहरी स्वयं अपने आप में इतिहास हो गई। टिहरी के नाम पर अब कुछ स्मृतियाँ शेष रह गई हैं। एक-दो पीढ़ियाँ गुजरने के बाद ये स्मृतियाँ भी समय के गर्भ में समा जाएँगी। शेष रह जाएँगे कागज और प्रपत्र पर कुछ लेख, कुछ कविताएँ, कुछ पुस्तकें, टिहरी के खूबसूरत चित्र, जो विकास के समर्थकों द्वारा यदि नष्ट न किये गए तो ! इसी टिहरी में कुछ ऐसे लोगों ने जन्म लिया था, जिन्होंने अपने कार्यों से इस मिट्टी की सुगन्ध को देश में ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महकाया। अनेक जांबाजों ने देश की सीमा पर लड़ते-लड़ते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था।<br/><br/>अब टिहरी के बाशिंदे विस्थापित होकर दूर-दूर स्थानों में खुद को व्यवस्थित कर रहे हैं। टिहरी 1965 से अपने अन्तिम क्षणों तक विवाद और बहस का विषय रही है। अब किसी विवाद और बहस के लिए टिहरी शेष नहीं रह जाएगी। शेष है तो विस्थापन और मुआवजे की चर्चा। जो जितनी जोर से चिल्लाया, रोया, उसको उतना ही अधिक मिला शायद भविष्य में भी मिले। भरपूर और मनचाहा मुआवजा और सुविधाएं मिलने के बाद यह विवाद, यह बहस भी समाप्त हो जाएगी।<br/><br/>कुछ लोग टिहरी की शीघ्र मृत्यु की प्रतीक्षा में ऐसे ही प्रसन्न थे, जैसे बुजुर्ग के मरने के बाद सम्पत्ति की बाँट या जीवन-बीमे की राशि में से अच्छा हिस्सा मिलने की उम्मीद में वारिस कुछ लोग टिहरी में जन्मे मगर रहे पत्थर जैसे सम्वेदनहीन। खैर! इस बहस में पड़ने से अब कोई लाभ नहीं। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनकी मानवीय सम्वेदनाएँ मरी नहीं थीं। वे अन्तिम समय तक भावनात्मक तौर से टिहरी और उसकी स्मृतियों से जुड़े रहे।<br/><br/>स्वयं मैं बचपन के गाँव भगवतपुर से सुनार देवी की पाठशाला और बदरीनाथ मन्दिर के पार्श्व में बने बने स्कूल तथा भागीरथी-भिलंगना को आज तक नहीं भूल पाया। लगभग एक दशकपूर्व टिहरी पर केन्द्रित कविताओं को संकलित करने के उद्देश्य से अनेक बार टिहरी जाना हुआ। श्री रमेश कुड़ियाल, श्री विक्रम सिंह बिष्ट, श्री महिपाल सिंह नेगी आदि ने त्रिहरि नामक संस्था के बैनर तले काफी खूबसूरत कार्यक्रम आयोजित कराये थे, जिनमें कविता पोस्टर प्रदर्शनी काफी लोकप्रिय रही थी।<br/><br/>मैंने श्री कुड़ियाल जी, विक्रम सिंह बिष्ट जी से अनुरोध किया कि कुछ कविता पोस्टर मुझे उपलब्ध करा दें। उन्होंने बहुत से पोस्टर उपलब्ध कराये। शेष रचनाएँ एकत्रित कर मुझे लगा एक अच्छी पुस्तक 'डूबती टिहरी की आखिरी कविताएँ' के रूप में संकलित की जानी चाहिए। यद्यपि कविताओं के पोस्टर आपस में चिपक गए थे। उन्हें अलग करना काफी कठिन कार्य था पर शायद इसी बहाने हम उस खूबसूरत शहर को जिसकी हमें अब न बसंत पंचमी देखने को मिलेगी, न सिंगोरी खाने को मिलेगी, न टिहरी की नथ उस रूप में देखने को मिलेगी, उस शहर को शायद कभी-कभी हम याद कर लें।<br/><br/>इन कविताओं में व्यक्ति का अपनी मिट्टी से मोह तथा अपनी संस्कृति, इतिहास, विरासत से बिछुड़ने का दर्द परिलक्षित हुआ है। यह भी परिलक्षित हुआ है कि विनाश की आधारशिला पर आधारित विकास और समृद्धि किसी को स्वीकार नहीं है। टिहरी से बिछुड़ने की छटपटाहट, दर्द हर कविता में दिखाई पड़ता है। डॉ. अचलानन्द जखमोला जी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि टिहरी के जल-समाधिस्थ होने की कल्पना मात्र ने भावुक हृदयों को उद्वेलित किया। उनकी अश्रुधारा काव्यधारा में उद्वेलित हुई। शोक श्लोक में परिवर्तित हुआ। इन कविताओं में भावनाओं का प्रवाह है।<br/><br/>डूबती टिहरी की पीड़ा को सभी ने अन्दर तक महसूस किया। टिहरी के प्रति सबके अपने भाव, भावनाएँ और सम्वेदनाएँ थीं जोकि कविताओं के रूप में फूट पड़ीं।<br/>डूबती टिहरी की आखिरी कविताएं एक जरूरी किताब है। यह इस किताब का तीसरा और पहला बहुभाषीय संस्करण है। इस पुस्तक में डूब रही टिहरी से संबंधित 56 कवियों की 75 हिन्दी, गढ़वाली व कुमाउनी कविताएं शामिल हैं। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Submerged Tehri the last poems |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Doobhti Tehri |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Poetry |
700 ## - ADDED ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Alter, Stephen (ed.) |
700 ## - ADDED ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Staff of the Landour language school (tr.) |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Home library | Current library | Date acquired | Cost, normal purchase price | Total checkouts | Full call number | Barcode | Date last seen | Price effective from | Koha item type |
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Not Missing | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2022-06-06 | 200.00 | UK 891.431 DOO | 168353 | 2022-06-06 | 2022-06-06 | Books |