Maalni ka aanchal : (Record no. 346665)
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fixed length control field | 11973nam a22001697a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
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005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789388165785 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | UK 891.431 BHA |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Bhatkoti, D.N. |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Maalni ka aanchal : |
Remainder of title | Shakuntala aur Dushyant ki pranay katha pr aadharit kathaye |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | Dehradun, |
Name of publisher, distributor, etc. | Samya sakshay |
Date of publication, distribution, etc. | 2020. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 96 p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | मालिनी नदी विशिष्ट इस अर्थ में है कि 'स्कन्द पुराण', 'वाल्मीकि रामायण' और 'महाभारत' में इसका उल्लेख है। महाकवि कालिदास की अमर कृति 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' में भी मालिनी नदी को प्रमुखता से महत्व दिया गया है। 'स्कन्द पुराण' के 'केदारखण्ड' में कण्व आश्रम सहित नन्दागिरी तक के समस्त मालिनी अंचल को परम पुण्य प्रदायक क्षेत्र के रूप में वर्णित किया गया है।<br/><br/>मालिनी के उद्गम स्थल, मलनिया से गढ़वाल जनपद के प्रवेश द्वार कोटद्वार तक लगभग चालीस मील के अंचल में कण्व ऋषि का गुरुकुल फैला हुआ था। कण्व ऋषि की पालिता पुत्री शकुन्तला और राजा दुष्यंत का प्रणय-प्रसंग तथा भरत के जन्म की कथा मालिनी के इसी अंचल से जुड़ी हुई है; जो पुरातन काल से वर्तमान तक निरन्तर प्रवाह के साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी कही और सुनी जाती है। भरत आर्यावर्त्त का प्रतापी राजा हुआ, जिसके नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा। मालिनी से जुड़े क्षेत्र में ही अप्सरा मेनका ने विश्वामित्र का तप भंग किया था, जिसके फलस्वरूप शकुन्तला का जन्म हुआ- ऐसी मान्यता है ।<br/><br/>'मालिनी का आँचल' काव्य का उद्देश्य इतिहास की समीक्षा करना तो नहीं ही है, पौराणिक आख्यान को भी हूबहू चित्रित करना नहीं है। पुराण भी लोक जीवन में उतरकर अनेकानेक कहानियों के संदर्भ बन जाते हैं। मालिनी नदी की घाटी में कई गांवों और जगहों को लेकर पुराणों के कथानक निहायत स्थानीय कलेवर में प्रचलित हैं। इन सबको समेटना तो समीचीन नहीं था, मगर इस काव्य के परिवेश में जितना अपेक्षित था, इनका अंकन लोक व्यवहार में किंवदन्तियों के तौर पर किया गया है।<br/><br/>सभ्यता किसी समाज का वाह्य कलेवर होती है, जो समय के अनुसार | बदलती रहती है। परन्तु संस्कृति किसी समाज की आंतरिक धरोहर होती है और इसको अंत: प्रेरणा या अन्दर से प्रवाहित, सूक्ष्म और अपेक्षाकृत स्थाई शक्ति के रूप में समझ सकते हैं। यानि संस्कृति किसी समाज की पहचान से जुड़ी होती है। संस्कृति के नियामक ऐतिहासिक, गैर ऐतिहासिक या विशुद्ध पौराणिक हो सकते हैं। तर्क और विवेक की कसौटी पर ये नियामक कभी-कभी खरे नहीं •उतरते तथापि सामूहिक अवचेतन मन को गहराई से घेर लेते हैं। लोक जीवन में लोक संस्कृति का समाज को समझने में विशेष महत्व होता है। इस विषय की गहरी पड़ताल इस काव्य की विषयवस्तु नहीं। यहाँ इतना कहना पर्याप्त होगा कि 'मालिनी का आँचल' काव्य में शकुन्तला और दुष्यंत की प्रणय कथा को आधार बनाकर लिया गया है और कथा-सूत्र तथा कथा-वस्तु की उस समय के परिवेश को ध्यान में रखते हुये, समेटा गया है। ऐसा करते हुये मानव मन से जुड़े और उसमें उभरने वाले प्रेम, आसक्ति, दायित्व, सौन्दर्य, प्रकृति, माया, ब्रह्म, मोक्ष जैसे शाश्वत भाव विचारों को, जो सर्वथा अमूर्त्त है, इस काव्य में उभारा गया है।<br/><br/>मैं नया क्या कर रहा हूँ? मेरा स्वयं से किया गया यह प्रश्न अपेक्षित है। शकुन्तला और दुष्यंत का प्रणय 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्', में कालिदास जैसी विभूति ने जिस काव्य कौशल से उभारा है, उसके सापेक्ष इस काव्य की आवश्यकता कहाँ रह जाती है। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर शकुन्तला शाश्वत नारी, दुष्यत शाश्वत नर तथा प्रेम शाश्वत शक्ति है तो शाश्वत समय जिसकी प्रतीक मालिनी की जलधारा है- मुझे लोक जीवन के वर्तमान में इस अगर' की दशा की ओर झाँकने के लिये विवश करती है और मैंने यही इस काव्य में किया। प्रेम को केन्द्र में रखकर नर नारी के संबंधों का वर्णन मात्र मेरा उद्देश्य नहीं। मैं इन संबंधों को चेतना के सूक्ष्म तल पर उतरते देखना चाहता हूँ और फिर प्रेम के व्यापक फलक को छूना चाहता हूँ। यह बहुत आसान नहीं इसका मुझे अहसास है।<br/><br/>भौतिकवादी जीवन दर्शन और प्रकृति का बेहिसाब दोहन सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारक है। इस परिवर्तन का असर स्त्री-पुरुष और व्यष्टि-समष्टि के संबंधों पर आसानी से देखा जा सकता है। पारंपरिक सोच और जीवन शैली तेजी से बदल रही है। इसका त्वरित प्रभाव ही है कि पलायन पर्वतीय जीवन का सामान्य लक्षण हो गया है। संसाधनों के अभाव में पुरुष घर परिवार छोड़कर आजीविका के लिए शहरों में काम की तलाश के लिए मजबूर होता है। इस पलायन का दंश पर्वतीय नारी सर्वाधिक झेलती है। पुरुष को अनुपस्थिति में परिवार और संतति का दायित्व उस पर ही होता है। आज की पर्वतीय नारी शकुनाला का नवीन संस्करण लगती है। यह दोहराव एक विडम्बना है जो इस काव्य का हिस्सा है।<br/><br/>शकुन्तला का एकाकी जीवन-नई ऊर्जा, संवेदना और आध्यात्मिक परिवेश की पृष्ठभूमि मातृत्व को नया आयाम देती है। 'पुनर्मिलन' के अंतर्गत भरत के लिये निर्दिष्ट जीवन और दुष्यंत द्वारा राजनीति और अध्यात्म के द्वन्द्व का निराकरण कुछ इस तरह है कि भरत 'धरती के अधिकार' और 'धरती के धैर्य' को पोषित और संरक्षित करेगा। यहाँ मेरा संकेत धरती के संसाधनों के दोहन और बहिर्मुखी विकास की ओर है। धरती के दोहन से जुड़े प्रश्नों को राष्ट्र-राज्यों को विश्व स्तर पर प्राथमिकता से लेना चाहिये।<br/><br/>मालिनी अकेली नदी नहीं, नदियों का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही कण्वघाटी की व्यथा मात्र इस घाटी की नहीं, इस पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड और एक सीमा तक मानव जाति की समस्या है। क्या हम जीवन की समग्रता को समझते हैं? क्या हम जीवन के विस्तार और उसकी गहराई को छूने की ललक रखते हैं? ये प्रश्न इस काव्य की सतह पर हैं। उत्तर न सही इन पर विचार तो हम कर ही सकते हैं। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Shakuntala aur Dushyant ki pranay katha |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Home library | Current library | Date acquired | Cost, normal purchase price | Total checkouts | Full call number | Barcode | Date last seen | Price effective from | Koha item type |
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Not Missing | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2022-06-06 | 120.00 | UK 891.431 BHA | 168355 | 2022-06-06 | 2022-06-06 | Books |