Summary, etc. |
लोक का अपना मानस होता है। जीवन और जगत को समझने की अपनी दृष्टि होती है। इसमें वे प्राकृतिक परिस्थितियाँ भी होती हैं जो लोक को प्रभावित करती हैं। भौगोलिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी अपना दायरा होता है। लोक में जिस चीज की कल्पना की जाती है उसे ही सच मान लिया जाता है। सच अलग होता है और कल्पना अलग होती है, इसका अंतर लोक नहीं करता है।<br/>उत्तराखण्ड में प्रचलित लोककथाओं का फलक विस्तृत है। लोककथाकारों ने अपने आस-पास के विविध विषयों पर कथाएँ गढ़ी हैं। प्रकृति, पर्यावरण, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, लोकविश्वास, अंधविश्वास, मान्यताएँ, ऐड़ी-आंछरी, भूत-प्रेत, ज्योतिष, धर्म, गाथाएँ, देवता, चमत्कार, मान्यताएँ, स्थानीय नायक, महापुरुष, सास-बहू, प्रेम, हिंसा, युद्ध, ऐतिहासिक घटनाएँ आदि उत्तराखण्ड की लोककथाओं के प्रिय विषय रहे हैं। प्रकृति के इस सुन्दर प्रदेश में जहां न्योली पर कथा है तो इंद्रधनुष, ताल, झील, झरनो को भी लोककथाकारों ने अपना विषय बनाया है। प्रकृति के आश्चर्यो, देवी देवताओं, पशु-पक्षियों, भूत-प्रेतों, परियों, वीर बहादुरों, हास्य, राजा-रानियों, जीव जन्तुओं, तन्त्र-मन्त्र, जादू-टोनो पर सर्वाधिक कथाएँ बुनी गई हैं। सास-बहू की खटपट जहाँ कथाओं के विषय रहे, वहीं स्त्री के परपुरुष संबंधों को भी लोकरचनाकारों ने कई कथाओं के विषय बनाए हैं। उपदेशात्मक कथाएँ भी खूब कही सुनी जाती रही हैं।<br/>राक्षस, शैद, परियाँ, वन देवियाँ जैसी विषयवस्तु पर आधारित लोककथाएँ भी खूब प्रचलित हैं। इन कथाओं में प्रायः इनके चमत्कारों और परामानवीय क्रियाकलापों को दिखाया जाता है। कर्मकाण्ड और अंधविश्वास बहुत सारी लोककथाओं में विद्यमान होता है। |