Aainasaaz (Record no. 346515)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 04218nam a22001697a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field 0
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20220430204316.0
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9789388753432
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H ANA
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Anamika
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Aainasaaz
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. New Delhi
Name of publisher, distributor, etc. Rajkamal
Date of publication, distribution, etc. 2020
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 241 p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. हमारे दौर की राजनीति, समाज, आदमी-सब अपने भीतर से लेकर बाहर तक जाने कैसे तो जंजाल में उलझे हुए हैं, और जब उसे सुलझाने चलते हैं, उस जाल से निकलकर खुली, साफ़ जगह में आने के लिए हाथ-पाँव पटकते हैं तो सुलझते- निकलते नहीं, और उलझ जाते हैं।<br/>क्या नहीं है हमारे पास? जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, अब वह भी है, और भरोसा है कि अब जिसकी कल्पना करेंगे, वह भी कल हो उठेगा।<br/>लेकिन ताला अगर कहीं लग गया है तो वह कल्पना ही पर है; और उसके संगी-साथी दूसरे कई मनोभाव-मनोशक्तियाँ और इनका सरदार एक सूफ़ी मन, उजली कामनाओं, और धरती-आकाश को एक करते धवल सपनों की छतरी; यह सब उस ताले के भीतर कहीं छटपटा-सिसक रहे हैं।<br/><br/>खुसरो एक पैदा हुआ, मध्यकालीन कहे जानेवाले उस साँवले हिन्दुस्तान में जिसकी छतें इतनी ऊँची होती थीं, कि हम बौनों की तिमंजिला बाँबियाँ उनमें खड़ी हो जाएँ। यह उस ख़ुसरो की आत्मकथा से रचा हुआ उपन्यास है जिसमें ख़ुसरो की चेतना को जीनेवाले आज के कुछ सूफ़ी मनवालों की कहानी भी साथ में पिरो दी गई है।<br/>ख़ुसरो इस कथा में अपना वह सब बताते हैं जिस तक हम उनकी नातों, क़व्वालियों और पहेलियों की ओट में नहीं पहुँच पाते कि उनका एक परिवार था, एक बेटी थी, बेटे थे, पत्नी थी, और थे निजाम पिया जिनकी निगाहों के साए तले उन्होंने वह सब सहा जो एक साफ़, हस्सास दिल अपने खून-सने वक़्तों और बेलगाम सनकों से हासिल कर सकता था।<br/>और इसमें कहानी है सपना की, नफ़ीस की, ललिता दी और सरोज की भी, जो आज के हत्यारे समय के सामने अपने दिल के आईने लिए खड़े हैं, लहूलुहान हो रहे हैं, पर हट नहीं रहे, जा नहीं रहे, क्योंकि वे उकताकर या हारकर अगर चले गए तो न पद्मिनियों के जौहर पर मौन रुदन करनेवाला कोई होगा, न इंसानियत को उसके क्षुद्रतर होते वजूद के लिए एक वृहत्तर विकल्प देनेवाला।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Novel
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
Holdings
Withdrawn status Lost status Damaged status Not for loan Home library Current library Date acquired Cost, normal purchase price Total checkouts Full call number Barcode Date last seen Price effective from Koha item type
  Not Missing Not Damaged   Gandhi Smriti Library Gandhi Smriti Library 2022-04-30 650.00   H ANA 168252 2022-04-30 2022-04-30 Books

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