Dalita andolana evaṃ rajaniti (Record no. 346473)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 07455nam a22001937a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field 0
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20220428162013.0
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9789386319814
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 305.56880954 PAT
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Paṭela, Utpala Ke.
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Dalita andolana evaṃ rajaniti
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Jaipur
Name of publisher, distributor, etc. Paradise
Date of publication, distribution, etc. 2018
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 250 p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. सामाजिक आंदोलनों में अल्पसंख्यकों एवं अधिकार तिवर्षको राजनीति में बढ़ा दिया है। इसी कारण से यह भी माना जाता है कि समकालीन लोकतंत्र अपने विस्तार और गहराई के लिए सामाजिक आंदोलनों का ऋणी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तो और राजनीतिक प्रणातियों में इस परिघटना का उदय हुआ। इनके पीछे ऐसी शरि समूह और संगठन जिनका उद्देश्य फरक के दायरों के बाहर समाज, राज्य सार्वजनिक नीतियों को जन हित के लिहाज से प्रभावित करना था। पिछले सात वर्षों में सामाजिक आंदोलनों ने राजनीतिक प्रणालियों और लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया पर उलेखनीय असर है। सारी दुनिया में पर्यावरण आंदोलन पुढ विरोधी आंदोलन असंगठित मजदूरों के आंदोलन, स्त्री-अधिकारों के आंदोलन, वैकल्पिक आंदोलन इस परिघटना की सफलता के प्रमाण हैं। वित्तीय पूंजी के भूमण्डलीकरण से उपजी जन-विरोधी प्रवृत्तियों के खिलाफ चल रहे आंदोलन भी इसी श्रेणी में आते हैं। सामाजिक आंदोलनों की एक खूबी यह भी है कि भले ही उनकी राजनीतिक कार्रवाई में स्थानीयता या जमीन से जुड़े होने के संबंध को<br/><br/>अहमियत दी जाए, लेकिन वे समस्याओं और मुद्दों को उत्तरोत्तर ग्लोबल सन्दर्भों में देखते और परिभाषित करते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी देशों में उभरे मध्य वर्ग ने स्वयं को पुराने वर्ग आधारित आंदोलनों के मुकाबले राजनीतिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से विशिष्ट महसूस करते हुए सामूहिक राजनीतिक कार्रवाई के ऐसे रूपों को अपनाना पसंद किया जिनके दायरे में कहीं व्यापक किस्म के नैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दे आते थे। इस ज़माने में चले कई सामाजिक आंदोलन नागरिक अधिकारों, स्त्री- अधिकारों, युद्ध का विरोध करने और पर्यावरण की हिफाइत करने के आग्रहों के इर्द-गिर्द गोलबंद हुए। साठ का दशक आते-आते इन आंदोलनों की गतिविधियाँ यूरोप और उत्तरी अमेरिका में काफी बढ़ गयीं। इन्हें राजनीतिक कामयाबी भी मिलने लगी। यह देख कर समाज वैज्ञानिकों ने इस परिघटना अध्ययन शुरू किया। सामाजिक आंदोलनों को समझने के लिए सबसे पहले मनोविज्ञान का प्रयोग किया । इससे आंदोलनरत लोगों, समूहों और नेटवकों के सामूहिक व्यवहार पर रोशनी डालना जरूरी है। दूसरा तरीका संरचना गत-प्रकार्यवादी किस्म का था। उसने यह देखने की कोशिश की कि इन आंदोलनों का सामाजिक स्थिरता पर गया असर पड़ रहा है। मास सोसाइटी का अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिकों को लगा कि सामाजिक आंदोलन निजो तनाव से जूझ रहे व्यक्तियों को अभिव्यक्तियों हैं। दूसरी तरफ संरचनागत प्रकार्यवादी विद्वानों का खात था कि ये आंदोलन सामाजिक प्रणाली में आये तनावों का फलितार्थ हैं। सामाजिक आंदोलनों को एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखा गया जिसके तहत राजनीतिक उद्यमी किसी इच्छित सामाजिक परिवर्तन की खातिर पहले तो संसाधनों का तर्कसंगत संचय करते हैं और फिर लक्ष्यों को बेधने के लिए संसाधनों का प्रयोग करते हैं। इस सिद्धांत को मानते हैं कि सामाजिक आंदोलन पूरी तरह से संसाधन उपलब्ध कर पाने की क्षमता पर ही निर्भर करते हैं। ये संसाधन आर्थिक और मानवीय सहयोग जुटाने पर भी आधारित हो सकते हैं और इनका उम नैतिक सरोकारों और प्राधिकार वगैरह में भी हो सकता है।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Social conditions
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Politics and government
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Dalits--Political activity
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
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