Agyeya hone ka arth (Record no. 346269)
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fixed length control field | 04162nam a22001817a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
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005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789389742527 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H 891.43802 AGY |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Vivek, Drishti Ka (ed.) |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Agyeya hone ka arth |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | Pryagraj |
Name of publisher, distributor, etc. | Lokbharti |
Date of publication, distribution, etc. | 2020 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 296 p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | यह किताब अज्ञेय के बहुआयामी सर्जक व्यक्तित्व के साथ कई पीढ़ियों का संवाद है। अज्ञेय हमारे देश की एक ऐसी सांस्कृतिक शख्सियत थे जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व में भारतीयता के अनेक मायने, अन्तर्विरोध और अन्तर्दृष्टियां निहित हैं। अज्ञेय साहित्य की अलग-अलग 'विधाओं की प्रकृति में अन्तर की गहरी समझ रखते थे। इस पुस्तक में संग्रह किये गये तमाम लेखों में अज्ञेय की रचनाशीलता के विविध आयामों के साथ साक्षात्कार न केवल उनके साहित्य के विशेषज्ञों, बल्कि तमाम युवतर लेखकों द्वारा भी किया गया है। अज्ञेय व्यक्तित्व की अनन्यता, अद्वितीयता, मौलिकता को कितना भी महत्त्व क्यों न देते रहे हों, उनका 'व्यक्तित्ववाद' भी प्रबुद्ध बुर्जुवा व्यक्तिवाद था जिसमें लोकतंत्र, आधुनिकता, धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता निहित थी। अज्ञेय के काव्य में सतत निजता की सुरक्षा और अहं से निजात पाने का द्वन्द्व चलता रहता है। अज्ञेय उत्तरोत्तर इतिहास से ज़्यादा सनातनता को महत्त्व देते गए। उन्हें एक मूल, सनातन मनुष्य की तलाश थी, अपने भीतर भी और बाहर भी, जो इतिहास (जैसा कि उसे समझा जाता है) के बाहर ही संभव थी। मुक्ति की तलाश में वे अहं को समाज में घुलाने की राह नहीं अपनाते बल्कि अहं से निष्कृति के लिए वे क्रमशः प्रेम, प्रकृति और तथागत (जापानी बौद्ध चिन्तन की रहस्वादी जेन शाखा का प्रत्यय) तथा गैर-धार्मिक आध्यात्म की दूसरी चिन्तन-पद्धतियों की ओर अग्रसर होते दिखाई देते हैं। मुक्ति उनके लिए सत्य की ही तरह वैयक्तिक है जो उन्हें मौन की साधना, सन्नाटे का छन्द बन जाने की ओर ले जाती है। उनसे वाद-विवाद-संवाद का रिश्ता हर पीढ़ी के साहित्यानुरागी का बना रहेगा। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Ciriticism |
700 ## - ADDED ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Singh, Hitesh Kumar (ed.) |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Home library | Current library | Date acquired | Total checkouts | Full call number | Barcode | Date due | Date last seen | Date last checked out | Price effective from | Koha item type |
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Not Missing | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2022-04-12 | 1 | H 891.43802 AGY | 168108 | 2023-09-29 | 2022-09-29 | 2022-09-29 | 2022-04-12 | Books |