Uttarakhand : (Record no. 346138)
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003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
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005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
control field | 20220224173359.0 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789382830757 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | UK 954.5451 NAI |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Naithani, Shiv Prasad. |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Uttarakhand : |
Remainder of title | Garhwal ki sanskriti, etihas aur lok sahitya |
250 ## - EDITION STATEMENT | |
Edition statement | 1st ed. |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication, distribution, etc. | Dehradun |
Name of publisher, distributor, etc. | Winsar Publishing Company |
Date of publication, distribution, etc. | 2020 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Extent | 655 p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc. | उत्तराखण्ड की संस्कृति, इतिहास और लोक साहित्य पर प्रकाश डालने वाला यह ग्रन्थ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते समय, लेखक को इस बात की हार्दिक प्रसन्नता है कि नवत, नवतिका में प्रवेश लेने से दो एक वर्ष पहले ही वह इस महायज्ञ को पूर्ण कराने में सफल हो गया है।<br/><br/>सुदीर्घ समय तक अध्यापन और अध्ययन तथा सर्वेक्षण एवं लेखन व प्रकाशन के बाद हमारी यह आंतरिक अभिलाषा थी कि इतिहास और संस्कृति के समन्वय के साथ आज के उत्तराखंड के विविध सामाजिक अंगों और प्रसंगों पर अपने दृष्टिकोण से सबको अवगत करायें।<br/><br/>जिज्ञासु और अभिरुचि वाले पाठक निसंदेह निर्णय करेंगे कि उत्तराखण्ड पर केंद्रित यह ग्रंथ कितना सामयिक और उपयोगी है। इस ग्रंथ में स्पष्ट किया गया है कि मात्र एक डेढ़ हजार वर्ष पहले से ही उत्तराखंड में मैदानी भाग से आने वाली जातियों, कबीलों और महत्वाकांक्षी राजवंशी उत्तराधिकारियों का अपने अनुचर व प्रजाजनों सहित यहां निवसित होना शुरू नहीं हुआ था, बल्कि उससे भी दो हजार वर्ष पहले के समय से, जिसे हम उत्तरमहाभारत काल या पाणिनि या बौद्ध काल नाम भी दे सकते हैं, यहां बाहर से आकर बसने व यहां के आदिवासी समाज में घुल मिल जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी।<br/><br/>इस संदर्भ को लेने पर पाठक निश्चय ही इस ग्रंथ के लेखों को रुचिपूर्वक पढ़ेंगे, यथा, यामुन- टोंस जनपद के प्रारंभिक जन, उत्तराखंड में हिंद, ईरानी बस्तियां तथा उत्तराखंड में हिंद यूनानी और हूण आदि<br/><br/>इनके बाद इस ग्रंथ के अन्य निबंध, उत्तराखंड की जनजातियां, उत्तराखंड गढ़वाल की संस्कृति, प्राचीन ऐतिहासिक नगर, चारधाम आदि मातृशक्ति उपासना और वैष्णव उपासना का अध्ययन उत्तरोत्तर प्रासंगिक होने लगते हैं।<br/><br/>लेखक की राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत पुस्तक 'उत्तराखंड के तीर्थ एवं मंदिर में जो अन्य तीर्थ एवं सिद्धि-सिद्धपीठ छूट गये थे, उनको इस पुस्तक में स्थान देने से यह पुस्तक 'उत्तराखंड के तीर्थ एवं मंदिर के द्वितीय भाग के समान महत्व पाने की अधिकारिणी हो गई है, ऐसा लेखक का मानना है।<br/><br/>उत्तराखंड गढ़वाल का प्राचीन साहित्य वैदिककाल के साहित्य के समान अलिखित, मौखिक और गेय-गान के रूप में होता था। इसके तलछट अवशेष आज तक चल रहे जागर-पंवाड़े, लोकगीत और गाथा गान पर अध्ययन एवं शोध कर प्राप्त किये जा सकते हैं। पाठक इस दृष्टि से जब इस पुस्तक के तृतीय भाग लोक साहित्य" को पढ़ेंगे तो अवश्य ऐसी अनुभूति होगी। |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical term or geographic name entry element | Uttarakhand-Lok Sahitya |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Home library | Current library | Date acquired | Total checkouts | Full call number | Barcode | Date last seen | Price effective from | Koha item type |
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Not Missing | Not Damaged | Gandhi Smriti Library | Gandhi Smriti Library | 2022-02-24 | UK 954.5451 NAI | 168064 | 2022-02-24 | 2022-02-24 | Books |