Mook Nayak Ke 100 Saal (Record no. 345967)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 04664nam a22001577a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field 0
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20211231225030.0
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9789391798567
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 891.43 BAC
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Bachin, Shyamraj Singh
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Mook Nayak Ke 100 Saal
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Kiradi, Delhi
Name of publisher, distributor, etc. Acadmic Publication
Date of publication, distribution, etc. 2021
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 254p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. कविता , कथा , पत्रकारिता , शोध , और आलोचना सहित कई " विधाओं में आधारभूत कार्य करने की वजह से प्रो . श्यौराज सिंह बेचैन ने लेखन के क्षेत्र में एक खास मुकाम हासिल किया है । इन्होंने भारतीय साहित्यिक विविधता की समृद्धि में विशेष और अम्बेडकरी दलित पत्रकारिता की दृष्टि से अभूतपूर्व योगदान दिया है । साहित्य भी कहीं दलित होता है ? पत्रकारिता कब से दलित हो गई ? पत्रकार की भी कोई जाति होती है क्या ? कविता , कविता होती है दलित या गैर दलित नहीं होती ? अरे ! अब हमारी आलोचना को तो बख्श दो कम्बख्तों । ' इत्यादि गैर - साहित्यिक प्रश्नों का सीधा सामना विगत तीन दशको से लेखक ने किया है और साहित्यक प्रश्नों के जवाब साहित्य रच कर दिए हैं । ऐसा समतावादी साहित्य जो वर्णवादी साहित्य की सभी विधाओं के समांतर वस्तुगत ढंग से विकसित हुआ , जिससे जाति वर्चस्व वाली साहित्य - व्यवस्था को प्रतिनिधित्व आधारित लोकतांत्रिक बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ । प्रस्तुत ग्रंथ के पहले हिस्से में बराबरी पसंद नए भारत के निर्माता , संविधान शिल्पी , ' सिंबल ऑफ नॉलिज ' बाबा साहब डॉ . बी.आर. अम्बेडकर के ' मूकनायक ' के सौ सालों पर एक शोधपरक विचार - संयोजक निबंध है जिसमें लेखक ने 1992-96 के दौरान ही बाबा साहब के युगांतरकारी संपादकीय लेखों का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया और पहली बार शोध अध्ययन किया था । ग्रंथ के दूसरे हिस्से में लेखक द्वारा समसामयिक विषयों पर लिखे गए सुप्रसिद्ध निबंध हैं । ये आंशिक रूप से हिंदी की राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं में छपे , पढ़े गए और सराहे गए हैं । पश्चिम का ' डिस्कोर्स ' शब्द हिंदी में ' विमर्श ' है , पर अस्मिता - संघर्ष के संदर्भ में व्यवहारतया विमर्श एक बौद्धिक जुगाली भर है । अस्तु ' अस्मिता - संघर्ष ' से लोकतांत्रिक मूल्य - बोध ध्वनित होता है , जिसे अशरीरी बौद्धिक अस्पृश्यता से मुक्ति पाने व सच्चे सर्वजन स्वराज की संकल्पना की एक तस्वीर बनाने की प्रेरणास्पद तथा रचनात्मक कोशिश है यह ग्रंथ ।
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
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