Hindi aur uski vividh boliyan (Record no. 29585)

MARC details
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082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 491.43 JAI 2nd ed.
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Jain, Deep Chandra
245 #0 - TITLE STATEMENT
Title Hindi aur uski vividh boliyan
250 ## - EDITION STATEMENT
Edition statement 2nd ed.
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Bhopal
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Name of publisher, distributor, etc. Madhya Pradesh Hindi Grantha Akad
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Date of publication, distribution, etc. 1988
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 255 p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. भाषा का शास्त्रीय अध्ययन सर्वप्रथम भारत में प्रारम्भ हुआ । यद्यपि ब्राह्मण ग्रन्थों और कल्प-सुखों में इस बात के अनेक संकेत मिलते हैं, फिर भी इस विषय का वैज्ञानिक विवेचन सर्वप्रथम यास्क से प्रारम्भ होता है। कठिन वैदिक शब्दों के विवेचन की आवश्यकता आठ सौ ईस्वी से पहले भी मालूम होने लगी थी । अनेक वैदिक शब्दों की व्युत्पत्तियां और उनके पीछे ऐतिहासिक, पौराणिक अथवा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विवेचन ग्राह्मण काल में होना प्रारम्भ हो गया था शतपथ ब्राह्मण में ऐसी सैकड़ों निरुक्तियाँ देखी जा सकती है। कालान्तर में अनेक निघण्टुओं की रचना हुई जिनमें संदिग्धार्यक शब्दों का संकलन किया गया। यह संकलन प्रायः वर्गीकृत था । निश्चय ही इन निघण्टुओं पर निर्वाचन ग्रन्थ लिखे गये होंगे । यास्क के निरुक्त में उल्लिखित लगभग डेढ़ दर्जन आचार्यों के नाम इसके प्रमाण हैं। यास्क ने लगभग २००० शब्दों की व्युत्पत्तियाँ दीं, उनके सम्भावित अर्थों पर विचार किया। उन्हें यह भलीभाँति मालूम था कि एक ही शब्द का अर्थ एक प्रदेश में कुछ होता है और दूसरे में और कुछ 'शव' का प्रयोग कम्बोज में गत्यर्थ में होता है। और आर्य प्रदेशों में विकार अर्थ में एक शब्द का स्वरूप प्रदेश-भेद से भिन्न हो सकता है यह बात भी यास्क को अवगत थी। एक ही गो शब्द गावि, गोणी, गोता और गोपोत्तलिका आदि विभिन्न रूपों में देखा जाता है। यास्क ने शब्दों के मूल रूप का पता लगाने के लिए भी कुछ सिद्धान्त स्थिर किये और उनके आधार पर शब्दों को परखा। आश्चर्य की बात है कि लगभग ढाई-तीन हजार वर्ष बाद भी जबकि भाषा-शास्त्र वैज्ञानिक स्वरूप ग्रहण कर चुका है और विश्व की प्राचीन एवं अर्वाचीन भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा चुका है, यास्क की लगभग पचास प्रतिशत व्युत्पत्तियाँ वैज्ञानिक निकष पर खरी उतरी हैं और शेष में से आधी से अधिक आंशिक रूप से सही हैं। भारत में व्याकरण और भाषाशास्त्र एक दूसरे के सहयोगी बनकर आगे बढ़े और उन्होंने धीरे-धीरे दर्शन का स्वरूप ग्रहण कर लिया। फलतः व्यावहारिक स्तर पर भाषाओं के अध्ययन का काम बहुत आगे नहीं बढ़ पाया।
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
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  Not Missing Not Damaged   Gandhi Smriti Library Gandhi Smriti Library 2020-02-02 MSR   H 491.43 JAI 2nd ed. 36034 2020-02-02 2020-02-02 Books

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