Himalaya main mahatma Gandhi k sipahi Sundarlal Bahuguna (Record no. 241620)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 11178nam a2200193Ia 4500
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20220730114047.0
008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION
fixed length control field 200213s9999 xx 000 0 und d
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788173099786
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 333.72092 VAL
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Valdiya, Khadag Singh
245 #0 - TITLE STATEMENT
Title Himalaya main mahatma Gandhi k sipahi Sundarlal Bahuguna
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. New Delhi
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Name of publisher, distributor, etc. Sasta Sahitya Mandal
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Date of publication, distribution, etc. 2017
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 186
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. शीर्ष स्थानीय पर्यावरण संरक्षक और सही मायने में गांधी के उत्तराधिकारी सुन्दरलाल बहुगुणा की कर्मयात्रा के महत्त्वपूर्ण पड़ावों को रेखांकित करने वाली पुस्तक 'हिमालय में महात्मा गांधी के सिपाही सुन्दरलाल बहुगुणा' को प्रकाश में लाते हुए 'सस्ता साहित्य मण्डल' गर्व का अनुभव कर रहा है। सुप्रसिद्ध भूविज्ञानविद् प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया ने बड़े मनोयोगपूर्वक शोध के उपरांत बहुगुणा जी के गांधी की राह को समर्पित सक्रिय सामाजिक जीवन की झाँकी इस पुस्तक में दर्ज की है । वल्दिया जी वैज्ञानिक हैं और सुन्दरलाल बहुगुणा पर्यावरण के प्रहरी । किन्तु दोनों की मानसिक बनावट में काफी समानता है। दोनों ही प्रकृति के साथ अतिशय मानवीय छेड़छाड़ के कारण आनेवाली भयानक विपदाओं से समाज को बचाना चाहते हैं । औपनिवेशिक मानसिकता की गुलामी दोनों को ही अस्वीकार्य है इसलिए प्रगति अथवा विकास के नाम पर देशी जीवन-पद्धति, संस्कृति और समाज की अवहेलना, उपेक्षा और विनाश से दोनों आहत हैं। लोकतंत्र के नाम पर जनता के साथ छल उन्हें भीतर तक सालता है। यह पीड़ा बहुगुणा जी के मौन में व्यक्त है और वल्दिया जी ने इसे बहुगुणा जी के अनथक प्रयासों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करके भावी पीढ़ियों को सौंप दिया है।<br/><br/>सुन्दरलाल बहुगुणा की जीवनी के साथ-साथ यह पुस्तक पर्यावरण रक्षा आंदोलन में जन भागीदारी का इतिहास भी है। विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक आजादी के लिए गांधी के बताए रास्ते पर चल पड़ने वाले सुन्दरता शिष्या मीरा वहन और सरला बहन के संसर्ग में रहकर प्रकृति मनुष्य के सहज संबंध के प्रति जागरुक हुए और 1967 से सामान्य के बीच इस जागरूकता का प्रसार करने लगे। और सत्तर के दशक वस्तुतः पर्यावरण के प्रति व्यापक जागरण के थे। चंडी प्रसाद भट्ट, गौरादेवी, वचनी देवी द्वारा चलाए 'चिपको' आंदोलन ने पर्यावरण की रक्षा में जनशक्ति के महत्व से स्थापित कर दिखाया; वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकारों ने जागृति फैलाई औद्योगिक विकास के नाम पर प्राकृतिक संपदा है। दोहन, शोषण और पिछड़े ग्रामीण जन तथा विकसित शहरों के बी बढ़ती दूरी को देख कवि-लेखक-बौद्धिक सचेत हुए। 1972 में ने 'नंदा देवी' शीर्षक से कविताएँ लिखते हुए इस विडम्बना को<br/><br/>उजागर किया नंदा<br/><br/>बीस तीस पचास वर्षों में तुम्हारी वन-राजियों की लुगदी बना कर हम उस पर अखबार छाप चुके होंगे;<br/><br/>तुम्हारे सन्नाटे को चींथ रहे होंगे<br/><br/>हमारे धुंधुआते शक्तिमान ट्रक,<br/><br/>तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगे<br/><br/>और तुम्हारी नदियाँ ला सकेंगी केवल शस्य-भक्षी बाढ़ें या आँतों को उमेठनी वाली बीमारियाँ, तुम्हारा आकाश हो चुका होगा हमारे अतिस्वन विमानों के धूम - सूत्रों से गुंझर ।<br/>नंदा, जल्दी ही<br/>बीस तीस पचास वर्षों में<br/><br/>हम तुम्हारे नीचे एक मरु बिछा चुके होंगे और तुम्हारे उस नदी धीत सीढ़ी वाले मंदिर में जला करेगा<br/><br/>एक मरु-दीप<br/><br/>इसी परिवेश में बहुगुणा जी ने अपने संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए पद यात्राएँ कीं, वनों के विनाश के प्रतिरोध में उपवास और सत्याग्रह आंदोलन चलाते हुए जनता को जगाया। उन्हें कर्मठ साथी मिले। अपने दृढ़ निश्चय और निरंतर प्रयास तथा जन सामान्य के सक्रिय सहयोग के चलते सरकारी तंत्र, ठेकेदारों, कंपनियों के दबावों प्रभावों को झेलते हुए बहुगुणा जी ने वन आंदोलन को व्यापक स्वीकृति दिलाई और पेड़ों की कटाई पर रोक लगवाने में सफल हुए। फिर कश्मीर से कोहिमा तक यात्रा कर हिमालय की वन-संपदा की रक्षा के माध्यम से जन-जीवन की स्थानीय संस्कृति की रक्षा का संदेश दिया।<br/><br/>जब भागीरथी पर टिहरी बाँध परियोजना शुरू हुई तो उन्होंने फिर से सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया। बाँध स्थल से सौ मीटर दूर कुटिया बनाकर बारह वर्ष तक पत्नी विमला के साथ रहे। पत्रकारिता, उपवास, भाषण, वार्तालाप के माध्यम से परियोजना पर रोक लगाने का दबाव बनाया। व्यापक जन समर्थन मिला, वैज्ञानिकों का सहयोग मिला। सरकार द्वारा बाँध पर पुनर्विचार का आश्वासन मिला तो उन्होंने उपवास तोड़ा। किन्तु बाँध बनाने वाली कंपनी की साम-दाम और भेद की नीति के चलते बाँध बन ही गया।<br/><br/>सुन्दरलाल इस विश्वासघात से बेहद आहत हुए। उन्होंने मौन व्रत धारण कर लिया। लेकिन यह संदेश देने में सफल हुए कि बाँध से आम जनता को लाभ नहीं, हानि ही अधिक होती है, पर्यावरण का विनाश होता है। बाँध से विस्थापित लोगों के पुनर्वास की लड़ाई शुरू की, फिर अनिश्चितकालीन उपवास किया। सरकारी तंत्र की हृदयहीनता की ओर ध्यानाकृष्ट कराने का पूरा प्रयास किया । भूमंडलीकरण और विकास की होड़ के समय में पर्यावरण आज विश्व स्तर पर एक बड़ा प्रश्न है जिसकी बात तो बहुत होती है किंतु अमल ज्यादा नहीं होता। ऐसे समय में सुन्दरलाल बहुगुणा पर केंद्रित यह पुस्तक हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के प्रति, प्रकृति के साथ जीने वालों के प्रति उसकी रक्षा में लगे लोगों के प्रति संवेदनशील रहने की, उनसे सीखने की सख्त जरूरत है।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Bahuguna, Sunderlal, - 1927
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
Holdings
Withdrawn status Lost status Source of classification or shelving scheme Damaged status Not for loan Home library Current library Date acquired Total checkouts Full call number Barcode Date last seen Price effective from Koha item type
  Not Missing Dewey Decimal Classification Not Damaged   Gandhi Smriti Library Gandhi Smriti Library 2020-02-13   H 333.72092 VAL 167123 2020-02-13 2020-02-13 Books

Powered by Koha