Shiksha sanskar evam uplabdhi
Gupta,Madhu
Shiksha sanskar evam uplabdhi v.2000 - Delhi Classical Publishing 2000 - 320p.
प्रस्तुत पुस्तक में प्रथम अध्याय में समस्या का प्रादुर्भाव व औचित्य प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में समस्या से सम्बन्धित सैद्धान्तिक पक्ष व इस क्षेत्र में हुए आनुभाविक शोधों का विवरण है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किन पक्षों पर शोध कार्य सम्पन्न किये जा चुके हैं व कौन-कौन से पक्ष अछूते रह गये हैं ? जिन पर शोध करने की आवश्यकता है। अध्याय तृतीय में समस्या के अध्ययनार्थ चयनित की गई शोध विधि एवम् उपकरण चयन तथा प्रदत्त संग्रह का विवरण प्रस्तुत किया गया है। चतुर्थ अध्याय में शिक्षित पीढ़ी, जाति, यौन-भिन्नता व सामाजिक-आर्थिक स्तर के सन्दर्भ में विद्यार्थियों की, शिक्षा के उच्च माध्यमिक स्तर पर, नामांकन स्थिति को दर्शाया गया है। अध्याय पंचम् चयनित मनोसामाजिक चरों की प्रकृति एवम् समष्टि में वितरण से सम्बन्धित है। पष्ठम् अध्याय में कारकीय विश्लेषण के रूप में शिक्षित पीढ़ी, जाति व यौन भिन्नता के स्वतन्त्र व अन्यान्योश्रित संयुक्त प्रभावों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। सप्तम् अध्याय प्रतिगमन विश्लेषण से सम्बन्धित है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि विभिन्न जाति वर्ग के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को सार्थक रूप से प्रभावित करने वाले कौन कौन से मनोसामाजिक कारक है ?
शोध परिणाम स्पष्ट करते हैं कि अनुसूचित जाति वर्ग को सवर्ण जाति के समान प्रगातिशील बनाने हेतु सामाजिक रूप से अधिकाधिक शैक्षिक सुविधायें तथा मनोवैज्ञानिक परामर्श देना आवश्यक है, जिसमें कि अनुसूचित जाति वर्ग के विद्यार्थी स्वतन्त्र संज्ञानात्मक शैली व आन्तरिक सामाजिक प्रतिक्रिया केन्द्र बिन्दु वाले हो सकें। फलस्वरूप वे अपनी शैक्षिक उपलब्धि में श्रेष्ठता दर्शा कर भारतीय समाज की अगड़ी जातियों में सम्मिलित होकर देश का उत्थान कर सकें।
H 370 GUP
Shiksha sanskar evam uplabdhi v.2000 - Delhi Classical Publishing 2000 - 320p.
प्रस्तुत पुस्तक में प्रथम अध्याय में समस्या का प्रादुर्भाव व औचित्य प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में समस्या से सम्बन्धित सैद्धान्तिक पक्ष व इस क्षेत्र में हुए आनुभाविक शोधों का विवरण है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किन पक्षों पर शोध कार्य सम्पन्न किये जा चुके हैं व कौन-कौन से पक्ष अछूते रह गये हैं ? जिन पर शोध करने की आवश्यकता है। अध्याय तृतीय में समस्या के अध्ययनार्थ चयनित की गई शोध विधि एवम् उपकरण चयन तथा प्रदत्त संग्रह का विवरण प्रस्तुत किया गया है। चतुर्थ अध्याय में शिक्षित पीढ़ी, जाति, यौन-भिन्नता व सामाजिक-आर्थिक स्तर के सन्दर्भ में विद्यार्थियों की, शिक्षा के उच्च माध्यमिक स्तर पर, नामांकन स्थिति को दर्शाया गया है। अध्याय पंचम् चयनित मनोसामाजिक चरों की प्रकृति एवम् समष्टि में वितरण से सम्बन्धित है। पष्ठम् अध्याय में कारकीय विश्लेषण के रूप में शिक्षित पीढ़ी, जाति व यौन भिन्नता के स्वतन्त्र व अन्यान्योश्रित संयुक्त प्रभावों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। सप्तम् अध्याय प्रतिगमन विश्लेषण से सम्बन्धित है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि विभिन्न जाति वर्ग के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि को सार्थक रूप से प्रभावित करने वाले कौन कौन से मनोसामाजिक कारक है ?
शोध परिणाम स्पष्ट करते हैं कि अनुसूचित जाति वर्ग को सवर्ण जाति के समान प्रगातिशील बनाने हेतु सामाजिक रूप से अधिकाधिक शैक्षिक सुविधायें तथा मनोवैज्ञानिक परामर्श देना आवश्यक है, जिसमें कि अनुसूचित जाति वर्ग के विद्यार्थी स्वतन्त्र संज्ञानात्मक शैली व आन्तरिक सामाजिक प्रतिक्रिया केन्द्र बिन्दु वाले हो सकें। फलस्वरूप वे अपनी शैक्षिक उपलब्धि में श्रेष्ठता दर्शा कर भारतीय समाज की अगड़ी जातियों में सम्मिलित होकर देश का उत्थान कर सकें।
H 370 GUP