Samsyaon ke salib par tangi rajbhasha hindi

Sinha, Sukh Sagar

Samsyaon ke salib par tangi rajbhasha hindi v.1989 - Gorakhpur Vaishali Prakaskan 1989 - 143 p.

राजभाषा हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की दयनीय स्थिति को देखते हुए एक संवेदनशील आस्थावान सामान्य भारतीय नागरिक के मन के क्लेश को प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहित निबन्धों के लिपिबद्ध करने का प्रयास किया गया | उद्देश्य यह है कि राजभाषा के अहम प्रश्न के हल का भार मात्र सरकार के भरोसे न छोड़ा जाय बल्कि देश की भावात्मक एकता और अखण्डता में विश्वास रखने वाले आम नागरिक अपने अन्तर की चेतना जगाए और अपने स्वयं के काम-काज में निरपवाद रूप से हिन्दी के प्रयोग का संकल्प लें।

जिस प्रकार अंग्रेजी राज के विरूद्ध संगठित होकर हिन्दी भाषी क्षेत्र ने देश को नेतृत्व प्रदान किया था उसी प्रकार यदि अंग्रेजी के विरूद्ध भी हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोग जाग्रत हो जाय और अपना सारा काम-काज चाहे वह सरकारी स्तर पर हो अथवा गैर सरकारी स्तर पर मात्र हिन्दी में करना प्रारम्भ कर दें तो राजभाषा के प्रयोग के मार्ग में उपस्थित सारी समस्यायें सुलझ जाय ।
सन्तोष की बात है कि हिन्दी को अपने आप तक के सुदीर्घ विकास खण्ड में अनेक अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है, विदेशी शासकों के कोप का भाजन बनना पड़ा है किन्तु सारे झंझावातों को झेलकर भी यह पानी पर तेल की तरह सहज रूप में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर फैलती जा रही है।


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