Stri-asmita ka itihas
Thakur, Abhay kumar
Stri-asmita ka itihas - New Delhi Vani 2025 - 172p.
यह पुस्तक मानव सभ्यता के विभिन्न चरणों में साहित्य के आईने में स्त्री अस्मिता के विश्लेषण का प्रयास है। वैदिक काल से लेकर स्मृति और धर्मशास्त्रों के काल तक प्राचीन भारतीय समाज में स्त्री की बदलती हुई छवि का प्रतिबिम्ब इसमें देखा जा सकता है। प्राचीन भारत में स्त्री-विमर्श अब तक मुख्यतः धर्मशास्त्रों ख़ासकर मनुस्मृति पर केन्द्रित रहा है, लेकिन मानव समाज की विकास-प्रक्रिया में इसका आकलन करने की कशिश बहुत कम हुई है। इस पुस्तक में सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-अस्मिता के बदलते हुए आयाम का विश्लेषण हज़ारों वर्षों के साहित्य की सुदीर्ध परम्परा में किया गया है। न केवल वेद, ब्राह्मण, उपनिषद, स्मृति, धर्मशास्त्र, जैन एवं बौद्ध साहित्य बल्कि लोक-कथाओं, वार्ताओं एवं संवादों में बिखरी हुई सामग्री के माध्यम से प्राचीन भारत में स्त्री की बदलती हुई छवि को पकड़ने का प्रयास किया गया है। हिन्दी में सम्भवतः पहली बार न केवल 'ब्रह्मादिनी' स्त्रियों और उनकी रचनाधर्मिता के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है, बल्कि प्राचीन भारतीय समाज में बौद्धिक विमर्श को एक नयी ऊँचाई तक पहुँचाने में उनकी सहभागिता को भी विशेष तौर पर रेखांकित किया गया है। प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह एक संग्रहणीय पुस्तक है। "
9789369449750
Feminism- Women
Author as an IRS
CS 305.4209 THA
Stri-asmita ka itihas - New Delhi Vani 2025 - 172p.
यह पुस्तक मानव सभ्यता के विभिन्न चरणों में साहित्य के आईने में स्त्री अस्मिता के विश्लेषण का प्रयास है। वैदिक काल से लेकर स्मृति और धर्मशास्त्रों के काल तक प्राचीन भारतीय समाज में स्त्री की बदलती हुई छवि का प्रतिबिम्ब इसमें देखा जा सकता है। प्राचीन भारत में स्त्री-विमर्श अब तक मुख्यतः धर्मशास्त्रों ख़ासकर मनुस्मृति पर केन्द्रित रहा है, लेकिन मानव समाज की विकास-प्रक्रिया में इसका आकलन करने की कशिश बहुत कम हुई है। इस पुस्तक में सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-अस्मिता के बदलते हुए आयाम का विश्लेषण हज़ारों वर्षों के साहित्य की सुदीर्ध परम्परा में किया गया है। न केवल वेद, ब्राह्मण, उपनिषद, स्मृति, धर्मशास्त्र, जैन एवं बौद्ध साहित्य बल्कि लोक-कथाओं, वार्ताओं एवं संवादों में बिखरी हुई सामग्री के माध्यम से प्राचीन भारत में स्त्री की बदलती हुई छवि को पकड़ने का प्रयास किया गया है। हिन्दी में सम्भवतः पहली बार न केवल 'ब्रह्मादिनी' स्त्रियों और उनकी रचनाधर्मिता के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है, बल्कि प्राचीन भारतीय समाज में बौद्धिक विमर्श को एक नयी ऊँचाई तक पहुँचाने में उनकी सहभागिता को भी विशेष तौर पर रेखांकित किया गया है। प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह एक संग्रहणीय पुस्तक है। "
9789369449750
Feminism- Women
Author as an IRS
CS 305.4209 THA