Zamane ke nayak
Singh, Namvar
Zamane ke nayak - New Delhi Vani 2025 - 205p.
वह कंजर्वेटिव थी। लेकिन उस गहरे संकट-बोध से प्रभावित थी। उसी गहरे संकट-बोध से टी. एस. इलियट ने 'ट्रेडिशन एंड इंडिविजवल टेलेंट' लिखा था। पूरी नयी आलोचना की शुरुआत एक संकट-बोध से हुई थी। इसलिए आज कुछ लोग तो कोई पुस्तक छपी और उसकी समीक्षा लिखकर तुष्ट हो गये या परम्परा के मूल्यांकन के नाम पर कोई लेख लिख दिया, उसको भी आलोचना कहते हैं। आलोचना की शुरुआत और सार्थक आलोचना इस सभ्यता के संकट-बोध की चिन्ता से शुरू होती है। आज का मौजूदा समय सभ्यता के गहरे संकट-बोध का है। भारत जिस दौर से गुज़र रहा है, पोस्टकलोनियल भारत, उत्तर-उपनिवेश युग का भारत, जिस दौर में आन्तरिक तनाव और बाहरी हस्तक्षेप, हज़ारों साल की पुरानी सभ्यता के उत्तराधिकार से एक दौर में बहुत कुछ से वंचित कर दिया जाने वाला, फिर उसको नये सिरे से खोजने वाला-धर्म में, मिथकों में और साथ ही पश्चिमी दुनिया से आने वाले अनेक आधुनिक चुनौती देने वाले विचारों के साथ तालमेल बैठाने की चिन्ता के साथ। इस गहरे संकट-बोध का मुक़ाबला करने की इच्छा और इस चिन्ता से कितनी आलोचना उद्भूत हुई है, यह हम-आप सभी पड़ताल करें-देखें। हम यह भी देखें कि किस आलोचक की आलोचना इस चिन्ता से प्रस्थान कर रही है। कौन इससे एकदम बेख़बर होकर लिखे जा रहे हैं। मैं समझता हूँ, मेरी यही चिन्ता है। यह चिन्ता मैं अशोक में भी पाता हूँ।
9789369440276
Literature-Hindi
H 891.4308 SIN
Zamane ke nayak - New Delhi Vani 2025 - 205p.
वह कंजर्वेटिव थी। लेकिन उस गहरे संकट-बोध से प्रभावित थी। उसी गहरे संकट-बोध से टी. एस. इलियट ने 'ट्रेडिशन एंड इंडिविजवल टेलेंट' लिखा था। पूरी नयी आलोचना की शुरुआत एक संकट-बोध से हुई थी। इसलिए आज कुछ लोग तो कोई पुस्तक छपी और उसकी समीक्षा लिखकर तुष्ट हो गये या परम्परा के मूल्यांकन के नाम पर कोई लेख लिख दिया, उसको भी आलोचना कहते हैं। आलोचना की शुरुआत और सार्थक आलोचना इस सभ्यता के संकट-बोध की चिन्ता से शुरू होती है। आज का मौजूदा समय सभ्यता के गहरे संकट-बोध का है। भारत जिस दौर से गुज़र रहा है, पोस्टकलोनियल भारत, उत्तर-उपनिवेश युग का भारत, जिस दौर में आन्तरिक तनाव और बाहरी हस्तक्षेप, हज़ारों साल की पुरानी सभ्यता के उत्तराधिकार से एक दौर में बहुत कुछ से वंचित कर दिया जाने वाला, फिर उसको नये सिरे से खोजने वाला-धर्म में, मिथकों में और साथ ही पश्चिमी दुनिया से आने वाले अनेक आधुनिक चुनौती देने वाले विचारों के साथ तालमेल बैठाने की चिन्ता के साथ। इस गहरे संकट-बोध का मुक़ाबला करने की इच्छा और इस चिन्ता से कितनी आलोचना उद्भूत हुई है, यह हम-आप सभी पड़ताल करें-देखें। हम यह भी देखें कि किस आलोचक की आलोचना इस चिन्ता से प्रस्थान कर रही है। कौन इससे एकदम बेख़बर होकर लिखे जा रहे हैं। मैं समझता हूँ, मेरी यही चिन्ता है। यह चिन्ता मैं अशोक में भी पाता हूँ।
9789369440276
Literature-Hindi
H 891.4308 SIN