Samkaleen sabhyata ke sankat ki mahagatha : nirvasan
Samkaleen sabhyata ke sankat ki mahagatha : nirvasan
- Prayagraj Lokbharti 2024
- 279p.
किसी कृति का महत्त्व इससे तय होता है कि उसे विभिन्न दृष्टिकोणों से परखा जा सकता है या नहीं। इस सन्दर्भ में यह देखना भी आवश्यक है कि उसकी विविध व्याख्याएँ हो सकती हैं, और हर व्याख्या-विश्लेषण से आगे उसे और नये आयामों/सन्दर्भों में परखने की राह निकलती है या नहीं। इस पुस्तक के लेखों में अखिलेश के ख्यात उपन्यास ‘निर्वासन’ को इन्हीं आधारों पर देखा-परखा गया है। उपन्यास में वर्णित वस्तुस्थितियों, प्रतिरोध के विभिन्न पहलुओं तथा जीवन के धूसर रंग के साथ चटख रंग जैसे विभिन्न आयामों को लेखकों ने विवेचित-विश्लेषित किया है। ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ में संकलित लेखों में उपन्यास के कथ्य में निहित दुश्चिन्ताओं से लेकर इसके सौन्दर्य पक्ष तक पर विचार किया गया है। यहाँ उचित ही यह रेखांकित किया गया है कि ‘निर्वासन’ में वर्णित संकट सिर्फ इसके पात्रों का संकट नहीं है बल्कि यह वर्तमान मनुष्य का संकट है। इस तरह यह पुस्तक उपन्यास के व्यापक परिप्रेक्ष्य को सप्रमाण प्रस्तुत करती है। मनुष्यता के ऊपर आए संकटों की शिनाख़्त करने के क्रम में लेखकगण जीवन के उन सुन्दर क्षणों को रेखांकित करना नहीं भूले हैं जिनसे तमाम प्रतिकूलताओं के बीच भी मनुष्य की उम्मीद खत्म नहीं होती। उम्मीद है कि ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ पाठकों के समक्ष ‘निर्वासन’ में अन्तर्निहित आयामों के विविध पक्षों को उद्घाटित कर उसकी श्रेष्ठता का साक्षात्कार कराने में सहायक होगी।
9788119996087
Hindi Literature
Critics
Alochana
H 891.4303 SAM
किसी कृति का महत्त्व इससे तय होता है कि उसे विभिन्न दृष्टिकोणों से परखा जा सकता है या नहीं। इस सन्दर्भ में यह देखना भी आवश्यक है कि उसकी विविध व्याख्याएँ हो सकती हैं, और हर व्याख्या-विश्लेषण से आगे उसे और नये आयामों/सन्दर्भों में परखने की राह निकलती है या नहीं। इस पुस्तक के लेखों में अखिलेश के ख्यात उपन्यास ‘निर्वासन’ को इन्हीं आधारों पर देखा-परखा गया है। उपन्यास में वर्णित वस्तुस्थितियों, प्रतिरोध के विभिन्न पहलुओं तथा जीवन के धूसर रंग के साथ चटख रंग जैसे विभिन्न आयामों को लेखकों ने विवेचित-विश्लेषित किया है। ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ में संकलित लेखों में उपन्यास के कथ्य में निहित दुश्चिन्ताओं से लेकर इसके सौन्दर्य पक्ष तक पर विचार किया गया है। यहाँ उचित ही यह रेखांकित किया गया है कि ‘निर्वासन’ में वर्णित संकट सिर्फ इसके पात्रों का संकट नहीं है बल्कि यह वर्तमान मनुष्य का संकट है। इस तरह यह पुस्तक उपन्यास के व्यापक परिप्रेक्ष्य को सप्रमाण प्रस्तुत करती है। मनुष्यता के ऊपर आए संकटों की शिनाख़्त करने के क्रम में लेखकगण जीवन के उन सुन्दर क्षणों को रेखांकित करना नहीं भूले हैं जिनसे तमाम प्रतिकूलताओं के बीच भी मनुष्य की उम्मीद खत्म नहीं होती। उम्मीद है कि ‘समकालीन सभ्यता के संकट की महागाथा : निर्वासन’ पाठकों के समक्ष ‘निर्वासन’ में अन्तर्निहित आयामों के विविध पक्षों को उद्घाटित कर उसकी श्रेष्ठता का साक्षात्कार कराने में सहायक होगी।
9788119996087
Hindi Literature
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Alochana
H 891.4303 SAM