Hindu darshan
Singh, Karan
Hindu darshan - 5th - New Delhi Vani 2024 - 192p.
"हिंदू दर्शन : एक समकालीन दृष्टि - भारतीय संस्कृति तथा दर्शन-विशेष रूप से हिंदू दर्शन के मनीषी चिंतक और विचारक डॉ. कर्ण सिंह की यह पुस्तक समकालीन समाज से गहरा सरोकार रखती है और चिंतन के कई नए आयामों को उजागर करती है । बिना किसी पूर्वाग्रह के डॉ. कर्ण सिंह ने भगवद्गीता और उपनिषदों के माध्यम से हिंदू दर्शन की मौलिकता का गंभीर विवेचन किया है । उनका मानना है कि हिंदू धर्म-दर्शन कोई संप्रदाय नहीं है; यह सर्वव्यापी और अलौकिक सत्ता से साक्षात्कार की जीवंत प्रक्रिया है । दरअसल, यह एक ऐसा जीवन-दर्शन है जो मनुष्य और मनुष्य के बीच की आनुवांशिक एवं भौगोलिक सीमाओं को नकारते हुए उसकी सार्वभौमिकता को प्रतिष्ठित करता है । उल्लेखनीय है कि डॉ. कर्ण सिंह ने हिंदू सार्वभौमिकता पर चर्चा ऐसे समय छेड़ी है जब समूचा विश्व एक भयावह संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। उनकी मान्यता है कि हिंदू धर्म-दर्शन पर अब तक किए गए चिंतन को व्यावहारिक रूप देने से आज की विकट त्रासदी से मुक्ति पाने के साथ ही वसुधैव कुटुंबकम् की भावना भी सार्थक हो सकती है। पुस्तक के अंत में 'मुंडक उपनिषद्' का अनुवाद और उसका अध्ययन - विवेचन पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी । "
9789357750974
Religion
Philosophy
H 294.54 SIN
Hindu darshan - 5th - New Delhi Vani 2024 - 192p.
"हिंदू दर्शन : एक समकालीन दृष्टि - भारतीय संस्कृति तथा दर्शन-विशेष रूप से हिंदू दर्शन के मनीषी चिंतक और विचारक डॉ. कर्ण सिंह की यह पुस्तक समकालीन समाज से गहरा सरोकार रखती है और चिंतन के कई नए आयामों को उजागर करती है । बिना किसी पूर्वाग्रह के डॉ. कर्ण सिंह ने भगवद्गीता और उपनिषदों के माध्यम से हिंदू दर्शन की मौलिकता का गंभीर विवेचन किया है । उनका मानना है कि हिंदू धर्म-दर्शन कोई संप्रदाय नहीं है; यह सर्वव्यापी और अलौकिक सत्ता से साक्षात्कार की जीवंत प्रक्रिया है । दरअसल, यह एक ऐसा जीवन-दर्शन है जो मनुष्य और मनुष्य के बीच की आनुवांशिक एवं भौगोलिक सीमाओं को नकारते हुए उसकी सार्वभौमिकता को प्रतिष्ठित करता है । उल्लेखनीय है कि डॉ. कर्ण सिंह ने हिंदू सार्वभौमिकता पर चर्चा ऐसे समय छेड़ी है जब समूचा विश्व एक भयावह संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। उनकी मान्यता है कि हिंदू धर्म-दर्शन पर अब तक किए गए चिंतन को व्यावहारिक रूप देने से आज की विकट त्रासदी से मुक्ति पाने के साथ ही वसुधैव कुटुंबकम् की भावना भी सार्थक हो सकती है। पुस्तक के अंत में 'मुंडक उपनिषद्' का अनुवाद और उसका अध्ययन - विवेचन पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी । "
9789357750974
Religion
Philosophy
H 294.54 SIN