Tumadi ke shabd
Narayan, Badri
Tumadi ke shabd - New Delhi Rajkamal 2019 - 111p.
बद्री नारायण ने लगभग तीन दशकों की कविता-यात्रा में लोकशास्त्र और इतिहास से जो तत्त्व अर्जित किए, वे अब और भी परिपक्व, सान्द्र तथा बहुवर्णी हुए हैं। वे पक्षी, वृक्ष, वाद्य और कथाएँ अब भी हैं जो बद्री के पहचान-चिन्ह और आधार-शक्ति रहे हैं, लेकिन जो सर्वथा नया और अप्रत्याशित है वह है समाज, सभ्यता और जीवनमात्र की निस्पृह समीक्षा। इस संग्रह की कविताएँ हारे, छूटे, टूटे लोगों की महाकाव्यात्मक पीड़ा की अभिव्यक्ति हैं। यहाँ हर कविता दूसरी से अभिन्न और अपरिहार्य है। ऐसी परिकल्पना व सृजन अपने आप में एक दुर्लभ घटना है। और बद्री ने यह सब सम्पन्न किया है अपने ही अभ्यस्त उपादानों से। बद्री ने कविता और जीवन-परिवर्तन की अपनी परम्परा अन्वेषित और निर्मित की है। उन्होंने कविता रचते हुए भी रुक-रुककर खुद को देखा है। अपने समय के वीभत्स भोगवाद, शोषण, असमानता और हिंसा की निर्मम आलोचना करते हुए यह संग्रह हमें अपने भीतर भी बसूले-रंदे चलाने को विवश करता है— नयी पगडंडी भले कच्ची ही हो/आजमाए एवं आदत में शुमार रास्तों से/ज्यादा अच्छी और ज्यादा सुखी दुनिया खोलती है/...इस पगडंडी पर बढ़ो/कहीं पहुँचो या न पहुँचो/इस पगडंडी पर चलो हिन्दी कविता की यह नयी पगडंडी है, अद्भुत और आकर्षक। और सबद की इसी तुमड़ी के साथ हमारी कविता एक नये बीहड़ में प्रवेश करती है। —अरुण कमल.
9789388933834
Hindi Literature; Poems; Sahitya Akademi awarded book
SA 891.431 NAR
Tumadi ke shabd - New Delhi Rajkamal 2019 - 111p.
बद्री नारायण ने लगभग तीन दशकों की कविता-यात्रा में लोकशास्त्र और इतिहास से जो तत्त्व अर्जित किए, वे अब और भी परिपक्व, सान्द्र तथा बहुवर्णी हुए हैं। वे पक्षी, वृक्ष, वाद्य और कथाएँ अब भी हैं जो बद्री के पहचान-चिन्ह और आधार-शक्ति रहे हैं, लेकिन जो सर्वथा नया और अप्रत्याशित है वह है समाज, सभ्यता और जीवनमात्र की निस्पृह समीक्षा। इस संग्रह की कविताएँ हारे, छूटे, टूटे लोगों की महाकाव्यात्मक पीड़ा की अभिव्यक्ति हैं। यहाँ हर कविता दूसरी से अभिन्न और अपरिहार्य है। ऐसी परिकल्पना व सृजन अपने आप में एक दुर्लभ घटना है। और बद्री ने यह सब सम्पन्न किया है अपने ही अभ्यस्त उपादानों से। बद्री ने कविता और जीवन-परिवर्तन की अपनी परम्परा अन्वेषित और निर्मित की है। उन्होंने कविता रचते हुए भी रुक-रुककर खुद को देखा है। अपने समय के वीभत्स भोगवाद, शोषण, असमानता और हिंसा की निर्मम आलोचना करते हुए यह संग्रह हमें अपने भीतर भी बसूले-रंदे चलाने को विवश करता है— नयी पगडंडी भले कच्ची ही हो/आजमाए एवं आदत में शुमार रास्तों से/ज्यादा अच्छी और ज्यादा सुखी दुनिया खोलती है/...इस पगडंडी पर बढ़ो/कहीं पहुँचो या न पहुँचो/इस पगडंडी पर चलो हिन्दी कविता की यह नयी पगडंडी है, अद्भुत और आकर्षक। और सबद की इसी तुमड़ी के साथ हमारी कविता एक नये बीहड़ में प्रवेश करती है। —अरुण कमल.
9789388933834
Hindi Literature; Poems; Sahitya Akademi awarded book
SA 891.431 NAR