Zindaginama
Sobti, Krishna
Zindaginama - 21th ed. - New Delhi Rajkamal 2022 - 391p.
लेखन को जीवन का पर्याय माननेवाली कृष्णा सोबती की कलम से उतरा एक ऐसा उपन्यास जो सचमुच जि़न्दगी का पर्याय है—जि़न्दगीनामा। जि़न्दगीनामा—जिसमें न कोई नायक। न कोई खलनायक। सिर्फ लोग और लोग और लोग। जि़न्दादिल। जाँबाज़। लोग जो हिन्दुस्तान की ड्योढ़ी पंचनद पर जमे, सदियों गाज़ी मरदों के लश्करों से भिड़ते रहे। फिर भी फसलें उगाते रहे। जी लेने की सोंधी ललक पर जि़न्दगियाँ लुटाते रहे। जि़न्दगीनामाका कालखंड इस शताब्दी के पहले मोड़ पर खुलता है। पीछे इतिहास की बेहिसाब तहें। बेशुमार ताकतें। ज़मीन जो खेतिहर की है और नहीं है, वही ज़मीन शाहों की नहीं है मगर उनके हाथों में है। ज़मीन की मालिकी किसकी है? ज़मीन में खेती कौन करता है? ज़मीन का मामला कौन भरता है? मुजारे आसामियाँ। इन्हें जकडऩों में जकड़े हुए शोषण के वे कानून जो लोगों को लोगों से अलग करते हैं। लोगों को लोगों में विभाजित करते हैं। जि़न्दगीनामा का कथानक खेतों की तरह फैला, सीधा-सादा और धरती से जुड़ा हुआ। जि़न्दगीनामा की मजलिसें भारतीय गाँव की उस जीवन्त परम्परा में हैं जहाँ भारतीय मानस का जीवन-दर्शन अपनी समग्रता में जीता चला जाता है। जि़न्दगीनामा—कथ्य और शिल्प का नया प्रतिमान, जिसमें कथ्य और शिल्प हथियार डालकर जि़न्दगी को आँकने की कोशिश करते हैं। जि़न्दगीनामा के पन्नों में आपको बादशाह और फकीर, शहंशाह, दरवेश और किसान एक साथ खेतों की मुँडेरों पर खड़े मिलेंगे। सर्वसाधारण की वह भीड़ भी जो हर काल में, हर गाँव में, हर पीढ़ी को सजाए रखती है।.
9788126707805
Novel- Hindi;Jnanpith awarded kriti
JP SOB K
Zindaginama - 21th ed. - New Delhi Rajkamal 2022 - 391p.
लेखन को जीवन का पर्याय माननेवाली कृष्णा सोबती की कलम से उतरा एक ऐसा उपन्यास जो सचमुच जि़न्दगी का पर्याय है—जि़न्दगीनामा। जि़न्दगीनामा—जिसमें न कोई नायक। न कोई खलनायक। सिर्फ लोग और लोग और लोग। जि़न्दादिल। जाँबाज़। लोग जो हिन्दुस्तान की ड्योढ़ी पंचनद पर जमे, सदियों गाज़ी मरदों के लश्करों से भिड़ते रहे। फिर भी फसलें उगाते रहे। जी लेने की सोंधी ललक पर जि़न्दगियाँ लुटाते रहे। जि़न्दगीनामाका कालखंड इस शताब्दी के पहले मोड़ पर खुलता है। पीछे इतिहास की बेहिसाब तहें। बेशुमार ताकतें। ज़मीन जो खेतिहर की है और नहीं है, वही ज़मीन शाहों की नहीं है मगर उनके हाथों में है। ज़मीन की मालिकी किसकी है? ज़मीन में खेती कौन करता है? ज़मीन का मामला कौन भरता है? मुजारे आसामियाँ। इन्हें जकडऩों में जकड़े हुए शोषण के वे कानून जो लोगों को लोगों से अलग करते हैं। लोगों को लोगों में विभाजित करते हैं। जि़न्दगीनामा का कथानक खेतों की तरह फैला, सीधा-सादा और धरती से जुड़ा हुआ। जि़न्दगीनामा की मजलिसें भारतीय गाँव की उस जीवन्त परम्परा में हैं जहाँ भारतीय मानस का जीवन-दर्शन अपनी समग्रता में जीता चला जाता है। जि़न्दगीनामा—कथ्य और शिल्प का नया प्रतिमान, जिसमें कथ्य और शिल्प हथियार डालकर जि़न्दगी को आँकने की कोशिश करते हैं। जि़न्दगीनामा के पन्नों में आपको बादशाह और फकीर, शहंशाह, दरवेश और किसान एक साथ खेतों की मुँडेरों पर खड़े मिलेंगे। सर्वसाधारण की वह भीड़ भी जो हर काल में, हर गाँव में, हर पीढ़ी को सजाए रखती है।.
9788126707805
Novel- Hindi;Jnanpith awarded kriti
JP SOB K