Hindi-bhasha ka udbhav aur vikas

Juyal, Gunanand

Hindi-bhasha ka udbhav aur vikas v.1988 - 5th ed. - Agra Vinod Pustak Mandir 1988 - 200 p.

संस्कृत में "भाष्" धातु व्यक्त करने अथवा कहने के अर्थ में प्रयुक्त होती है इसी से 'भाषा' शब्द व्युत्पन्न होता है संस्कृत में एक दूसरी धातु 'भास' है, जिसका अर्थ- चमकना या प्रकाशित होना है। इन दोनों धातुओं के अर्थ में समानता है भाषा कुछ शब्दों का उच्चारण मात्र नहीं है। वह हमारे अन्तस् को शब्दों द्वारा बाहर प्रकाशित कर देती है। भाषा में वाक् और अर्थ — दोनों अन्तर्निहित है इसलिए महाकवि कालिदास ने पार्वती परमेश्वरी' को उपमा के लिए वाय र्थाविव संपृक्ती' का प्रयोग किया है। अपनी मूल अवस्था में मनुष्य इंगित आदि नाना अनुभावों तथा अन्य साधनों द्वारा अपने विचारों तथा भावों को प्रकाश में लाता था । किन्तु विकास के क्रम में जिस दिन मनुष्य को भाषा की सिद्धि हुई, उसी दिन मानवता पशुत्व से अलग हो गई। यह तो नहीं कहा जा सकता कि पशुओं द्वारा अपने समूह में भावों को प्रकट करने के लिए ध्वनियों का प्रयोग नहीं किया जाता । पशुओं की ध्वनियों को लोग पशु-भाया भी कहते हैं किन्तु पशुओं का ध्वनियों द्वारा अपने भाव प्रकट करने का प्रयत्न अत्यन्त अपूर्ण और अस्पष्ट है। उनकी ध्वनियाँ अविश्लेष्य रहती हैं, अतः भाषा के अन्तर्गत नहीं आतीं। संसार में कुछ आविष्कार तथा गवेषणाएँ ऐसी हुई हैं जिन्होंने मानव जाति को विकास की ओर ले जाने में अत्यधिक सहायता पहुँचाई है, उन्होंने मानव-जीवन के बाह्य और आन्तरिक पक्षों में आमूल परिवर्तन कर दिया है; यथा विद्युत । किन्तु भाषा की उपलब्धि सबसे प्राचीन और साथ ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली रही है। यदि मानव को भाषा की प्राप्ति नहीं होती तो वह अपने पशु बान्धवों से अधिक भिन्न न होता ।

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