Shiksha samaj aur vyavastha / by Sharadchandra Behar, Ramsharan Joshi [and] Brahmadev Sharma ; edited by Brahmadev Sharma
Behar,Sharadchandra
Shiksha samaj aur vyavastha / by Sharadchandra Behar, Ramsharan Joshi [and] Brahmadev Sharma ; edited by Brahmadev Sharma - Bhopal Madhya Pradesh Hindi Grantha - 204p.
विश्व भर के शिक्षाशास्त्री इस पर एकमत हैं कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए। विद्यार्थी के लिए मातृभाषा सहज संप्रेषणीय एवं विषय को गहराई तक जानने में सहयोगी होती है। शिक्षा के माध्यम के रूप में दूसरी भाषा छात्र के मष्तिक पर अतिरिक्त दबाव का काम करती है, जिससे वह विषय-वस्तु पर पर्याप्त ध्यान दे पाने के बजाय अपनी सृजनात्मक ऊर्जा का क्षय भाषा ज्ञान बढ़ाने में करता है ।
स्कूली स्तर पर शासन ने मध्यप्रदेश में मातृभाषा हिन्दी को माध्यम के रूप में स्थापित कर दिया है । किन्तु उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से, महंगी अंग्रेजी शिक्षा पाये छात्र तो लाभान्वित होते रहे, लेकिन मातृभाषा के माध्यम से उच्चतर माध्यमिक परीक्षा पास छात्र पिछड़ते रहे। स्वाभाविक रूप से विकास का मार्ग उनके लिये प्रशस्त होता गया, जो साधन-सम्पन्न थे। इस प्रकार भाषायी विसंगति के कारण समाज में वर्गभेद की एक नई श्रृंखला ने जड़ें जमाना आरम्भ कर दीं ।
सुखद है कि समय रहते केन्द्र सरकार ने इस ओर ध्यान दिया और उच्च शिक्षा सर्वजन को सुलभ कराने के लिए मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया । माध्यम परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा थी तकनीकी शब्दावली और पाठ्य ग्रन्थों का अभाव वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग ने शब्दावली की समस्या का निराकरण किया तथा मानक शब्दावली तैयार की जिससे पाठयक्रमों की भाषा में एकरूपता रह सके। बाद को केन्द्र सरकार ने प्रत्येक प्रान्त को एक-एक करोड़ रुपये की राशि देकर पाठ्य ग्रन्थों के अभाव को दूर करने के लिए राज्य शासन के सहयोग से इन अकादमियों की स्थापना की । केन्द्र प्रवर्तित इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी ने विगत 10 वर्षों में विज्ञान, इंजीनियरी, आयुर्विज्ञान, कृषि, विधि, कला और मानविकी संकायों के विविध 25 विषयों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरीय लगभग 300 ग्रन्थों का निर्माण और प्रचलन कराया है । इस सार्थक पहल से उच्च शिक्षा में हिन्दी ग्रन्थों का अभाव कुछ सीमा तक दूर हुआ है ।
अकादमी के ग्रन्थों के लेखक वे स्थानीय महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित प्राध्यापक ही हैं जो विद्यार्थियों की आवश्यकता एवं विश्व विद्यालय पाठ्यक्रमों से भली भांति परिचित हैं। इस प्रक्रिया में अकादमी प्रदेश के साहित्येतर लेखन को वाजिब प्रोत्साहन एवं लेखकों को संरक्षण देते का महत्त्वपूर्ण कार्य भी कर रही है।
H 370.115
Shiksha samaj aur vyavastha / by Sharadchandra Behar, Ramsharan Joshi [and] Brahmadev Sharma ; edited by Brahmadev Sharma - Bhopal Madhya Pradesh Hindi Grantha - 204p.
विश्व भर के शिक्षाशास्त्री इस पर एकमत हैं कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए। विद्यार्थी के लिए मातृभाषा सहज संप्रेषणीय एवं विषय को गहराई तक जानने में सहयोगी होती है। शिक्षा के माध्यम के रूप में दूसरी भाषा छात्र के मष्तिक पर अतिरिक्त दबाव का काम करती है, जिससे वह विषय-वस्तु पर पर्याप्त ध्यान दे पाने के बजाय अपनी सृजनात्मक ऊर्जा का क्षय भाषा ज्ञान बढ़ाने में करता है ।
स्कूली स्तर पर शासन ने मध्यप्रदेश में मातृभाषा हिन्दी को माध्यम के रूप में स्थापित कर दिया है । किन्तु उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से, महंगी अंग्रेजी शिक्षा पाये छात्र तो लाभान्वित होते रहे, लेकिन मातृभाषा के माध्यम से उच्चतर माध्यमिक परीक्षा पास छात्र पिछड़ते रहे। स्वाभाविक रूप से विकास का मार्ग उनके लिये प्रशस्त होता गया, जो साधन-सम्पन्न थे। इस प्रकार भाषायी विसंगति के कारण समाज में वर्गभेद की एक नई श्रृंखला ने जड़ें जमाना आरम्भ कर दीं ।
सुखद है कि समय रहते केन्द्र सरकार ने इस ओर ध्यान दिया और उच्च शिक्षा सर्वजन को सुलभ कराने के लिए मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया । माध्यम परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा थी तकनीकी शब्दावली और पाठ्य ग्रन्थों का अभाव वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग ने शब्दावली की समस्या का निराकरण किया तथा मानक शब्दावली तैयार की जिससे पाठयक्रमों की भाषा में एकरूपता रह सके। बाद को केन्द्र सरकार ने प्रत्येक प्रान्त को एक-एक करोड़ रुपये की राशि देकर पाठ्य ग्रन्थों के अभाव को दूर करने के लिए राज्य शासन के सहयोग से इन अकादमियों की स्थापना की । केन्द्र प्रवर्तित इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी ने विगत 10 वर्षों में विज्ञान, इंजीनियरी, आयुर्विज्ञान, कृषि, विधि, कला और मानविकी संकायों के विविध 25 विषयों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरीय लगभग 300 ग्रन्थों का निर्माण और प्रचलन कराया है । इस सार्थक पहल से उच्च शिक्षा में हिन्दी ग्रन्थों का अभाव कुछ सीमा तक दूर हुआ है ।
अकादमी के ग्रन्थों के लेखक वे स्थानीय महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित प्राध्यापक ही हैं जो विद्यार्थियों की आवश्यकता एवं विश्व विद्यालय पाठ्यक्रमों से भली भांति परिचित हैं। इस प्रक्रिया में अकादमी प्रदेश के साहित्येतर लेखन को वाजिब प्रोत्साहन एवं लेखकों को संरक्षण देते का महत्त्वपूर्ण कार्य भी कर रही है।
H 370.115