Upnivesh ke cheete

Sharma, Jitendra

Upnivesh ke cheete - Dehradun Samay sakshay 2019 - 135 p.

पुस्तक का फलक कुछ अलग मिज़ाज लिए है। सत्तर-अस्सी के दशक में मसूरी में अंग्रेज़ीयत के अवशेष मैंने स्वयं जिये हैं। नामी होटलों और मेरे कार्यस्थल पर रात्रिभोज में 'सात कोर्स' का प्रचलन आम बात थी।

यह किताब मसूरी की स्मृतियों की किताब है- उस काल खंड की, जब यहाँ से अंग्रेज तो चला गया था, पर लोगों के दिलोदिमाग, व्यवहार तथा तौर तरीकों में, अंग्रेजीयत की छाप कम नहीं हुई थी। राजे रजवाड़ों, रईसों और विशिष्ट प्रतिष्ठित धनी घरानों का आना भी यथावत था, साथ ही भारत का नव धनाढ्य वर्ग भी मई जून में 'पहाड़ों की रानी' में अपनी उपस्थिति लगाने लगा था। माल रोड भी पूर्ववत साफ सुथरा था, सफाई कर्मचारी पीठ पर बास्केट और हाथ में झाडू लिए मुस्तैदी से हाज़री देता था। मजाल है कि काग़ज़ का टुकड़ा या मूँगफली का छिलका तक सड़क पर दिखाई पड़ जाये। आदमी द्वारा खींची जाने वाली अमानवीय रिक्शा भी माल रोड़ की सड़क पर इधर से उधर आती-जाती दिखलाई पड़ती थी।

9789388165334


Fiction

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