Gaon ke bayan
Apchyan, Preetam.
Gaon ke bayan - 1st ed. - Dehradun Doon Pustkalaya evam Sodh kendra 2019 - 54 p.
आज से सैकड़ों साल बाद जब इतिहासकार व समाज विज्ञानी वर्तमान समय का अध्ययन, मूल्याकंन व विश्लेषण करेंगे तो मुझे विश्वास है कि वह एक निष्कर्ष पर अवश्य पहुंचेंगे: बीसवीं सदी के उत्तरार्ध (द्वितीय महायुद्ध के बाद) तथा इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भिक दो दशकों का समय विश्व में विविध क्षेत्रों व दिशाओं में प्रबल परिवर्तन का काल था। यह परिवर्तन बहुत तेजी से आए और पूरे विश्व में थोड़े ही समय में फैल गए। हम चाहे अर्थव्यवस्था की बात करें या राजनीति की, हमें परिवर्तन स्पष्ट नज़र आते हैं। जहां तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रश्न है, तो परिवर्तनों की रफ्तार चमत्कारी ही कही जाएगी। हमने अपने जीवन काल के अल्प समय में ऐसे-ऐसे नये प्रयोगों व उपभोक्ता वस्तुओं को अस्तित्व में आते व आम लोगों के बीच पैठ बनाते देखा है, जैसा पूर्व में कई सदियों में सम्भव होता था। निश्चित रूप से इस तेज गति के परिवर्तन का असर हमारे रहन-सहन, खान-पान, विचारों और सामाजिक जीवन पर भी गहराई से पड़ा है। आज देश-दुनिया की हर छोटी-बड़ी खबर हमको तुरन्त उसके घटते ही मिल जाती है। फलस्वरूप आज का युवा वर्ग अत्यन्त जागरूक है तथा उसके मन में भी वही इच्छाएं व आशाएं हैं जो अन्य जगहों पर हैं। इस परिस्थिति में यह उम्मीद रखना कि आज के लोग उसी प्रकार की जीवन शैली अपनाएंगे जैसी उनके माता-पिता या अन्य पूर्वजों की थी, व्यर्थ ही होगा।
तेजी से घटते इस बदलाव का असर उतनी ही रफ्तार से हमारे गांवों भी पड़ा है। आज के गांव पिछले 70 वर्षों के गावों से बहुत भिन्न हैं। यदि पर हम उत्तराखण्ड की ही बात करें तो हम पाते हैं कि गांवों का स्वरूप बदलने के दो मुख्य कारक हैं- जिसमें से एक कारक तेजी से बढ़ता शहरीकरण है। जहां 1951 में 13.6 प्रतिशत लोग शहरों में रहते थे, वर्ष 2011 में यह संख्या 30 प्रतिशत को पार कर गई (स्मरण रहे कि 1951 में उत्तराखण्ड राज्य की कुल जनसंख्या 29.5 लाख थी जो 2011 में 1 करोड़ से अधिक हो गई) ।
9789388165242
Rural life
UK 307.72 APC
Gaon ke bayan - 1st ed. - Dehradun Doon Pustkalaya evam Sodh kendra 2019 - 54 p.
आज से सैकड़ों साल बाद जब इतिहासकार व समाज विज्ञानी वर्तमान समय का अध्ययन, मूल्याकंन व विश्लेषण करेंगे तो मुझे विश्वास है कि वह एक निष्कर्ष पर अवश्य पहुंचेंगे: बीसवीं सदी के उत्तरार्ध (द्वितीय महायुद्ध के बाद) तथा इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भिक दो दशकों का समय विश्व में विविध क्षेत्रों व दिशाओं में प्रबल परिवर्तन का काल था। यह परिवर्तन बहुत तेजी से आए और पूरे विश्व में थोड़े ही समय में फैल गए। हम चाहे अर्थव्यवस्था की बात करें या राजनीति की, हमें परिवर्तन स्पष्ट नज़र आते हैं। जहां तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रश्न है, तो परिवर्तनों की रफ्तार चमत्कारी ही कही जाएगी। हमने अपने जीवन काल के अल्प समय में ऐसे-ऐसे नये प्रयोगों व उपभोक्ता वस्तुओं को अस्तित्व में आते व आम लोगों के बीच पैठ बनाते देखा है, जैसा पूर्व में कई सदियों में सम्भव होता था। निश्चित रूप से इस तेज गति के परिवर्तन का असर हमारे रहन-सहन, खान-पान, विचारों और सामाजिक जीवन पर भी गहराई से पड़ा है। आज देश-दुनिया की हर छोटी-बड़ी खबर हमको तुरन्त उसके घटते ही मिल जाती है। फलस्वरूप आज का युवा वर्ग अत्यन्त जागरूक है तथा उसके मन में भी वही इच्छाएं व आशाएं हैं जो अन्य जगहों पर हैं। इस परिस्थिति में यह उम्मीद रखना कि आज के लोग उसी प्रकार की जीवन शैली अपनाएंगे जैसी उनके माता-पिता या अन्य पूर्वजों की थी, व्यर्थ ही होगा।
तेजी से घटते इस बदलाव का असर उतनी ही रफ्तार से हमारे गांवों भी पड़ा है। आज के गांव पिछले 70 वर्षों के गावों से बहुत भिन्न हैं। यदि पर हम उत्तराखण्ड की ही बात करें तो हम पाते हैं कि गांवों का स्वरूप बदलने के दो मुख्य कारक हैं- जिसमें से एक कारक तेजी से बढ़ता शहरीकरण है। जहां 1951 में 13.6 प्रतिशत लोग शहरों में रहते थे, वर्ष 2011 में यह संख्या 30 प्रतिशत को पार कर गई (स्मरण रहे कि 1951 में उत्तराखण्ड राज्य की कुल जनसंख्या 29.5 लाख थी जो 2011 में 1 करोड़ से अधिक हो गई) ।
9789388165242
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