Madhya Ganga Ghati Ki Laghu Mrinmay Vastuye : ek puratatvik adhyan

Kumara, Sarvesa

Madhya Ganga Ghati Ki Laghu Mrinmay Vastuye : ek puratatvik adhyan - New Delhi Kaveri books 2021. - 295 p.

मध्य गंगा घाटी प्राचीन काल से ही मानव समूह को अपनी अकूत प्राकृतिक संपदा एवं विलक्षणता के कारण जीवन निर्वहन हेतु आकर्षित करती रही है, जिसके कारण प्राचीन काल से ही यहां अनेक संस्कृतियों पुष्पित पल्लवित रहीं। खाद्य संसाधनों की पूर्णता के उपरांत अन्य भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मनुष्य अपनी मस्तिष्क क्षमता एवं अनुभवों के आधार पर तकनीकी क्रिया कलाप संपादित करता है। इसी क्रम में उसका परिचय मिट्टी के गुणों से हुआ जिसको वह अपनी सोच के अनुसार आकार एवं रूप दे सकता था। मिट्टी सर्वसुलभ थी अतः वस्तु निर्माण में कोई परेशानी नही थी। मिट्टी से निर्मित वस्तुएं सभी पुरास्थलों से अत्यधिक मात्रा में प्राप्त होती हैं, जिनमें लघु मृण्मय वस्तुएँ इतिहास में कम महत्व प्राप्त कर पाती हैं परंतु उनमे लोक जीवन का सम्पूर्ण वांग्मय समाहित होता है। अतः लेखक ने इस पुस्तक में लघु मृण्मय वस्तुओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं को समाहित करने का प्रयत्न किया है, जिससे शोधार्थियों को सम्पूर्ण जानकारी एवं स्रोत प्राप्त हो सके।

इस पुस्तक में मध्य गंगा घाटी के उत्खनित पुरास्थलों से प्राप्त लघु मृण्मय वस्तुओं का आरम्भ से लेकर गुप्त काल तक के संदर्भ में शोध किया गया है। जिनमें मानव, पशु पक्षी मृण्मूर्तियाँ, श्रृंगार की वस्तुएँ, खिलौने, गृह उपयोगी वस्तुएँ है। उपरोक्त वस्तुओं का लोक जन जीवन में आज भी किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जा रहा है। परंतु वैज्ञानिक प्रगति होने से मृण्मय कला पर विराम लगता प्रतीत हो रहा है। परंतु इतिहास की परिपूर्णता हेतु लघु मृण्मय वस्तुओं के अध्ययन एवं शोध की आवश्यकता है जो लेखक द्वारा अभी भी जारी है जिससे इतिहास के सूक्ष्म तथ्यों का ज्ञान बृहत परिपेक्ष में प्राप्त हो सके।

9789386463159


India--Uttar Pradesh
India--Bihar

H 738.0954 KUM

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