Indraprasth
Upendra Kumar
Indraprasth - Delhi Anugya Books 2017 - 87
इस ‘इन्द्रप्रस्थ' नामक रचना में एक शाश्वत पुरुष है जो कभी युधिष्ठिर बन बोलता है तो कभी अर्जुन। कभी उसके मुख से कृष्ण की आवाज मैं आज की राजनीति प्रगट होती है तो कभी आज के वंचित-शोषित समाज के दुःख-दर्द की गाथा कर्ण की व्यथा बन व्यक्त हो रही होती है।
9788193330678
Hindi Poetry
IAS as an author
1972 Batch
CS 891.431 / UPE
Indraprasth - Delhi Anugya Books 2017 - 87
इस ‘इन्द्रप्रस्थ' नामक रचना में एक शाश्वत पुरुष है जो कभी युधिष्ठिर बन बोलता है तो कभी अर्जुन। कभी उसके मुख से कृष्ण की आवाज मैं आज की राजनीति प्रगट होती है तो कभी आज के वंचित-शोषित समाज के दुःख-दर्द की गाथा कर्ण की व्यथा बन व्यक्त हो रही होती है।
9788193330678
Hindi Poetry
IAS as an author
1972 Batch
CS 891.431 / UPE