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520 _a"भला साक्षरता का साइकिल से क्या रिश्ता? ऐसा सवाल तो कई बार उठता है। साइकिल ही क्यों, 'कराटे', ट्रेक्टर या तैराकी की क्लासों ने भी साक्षरता का आह्वान किया है। और हजारों महिलाओं ने इस बुलावे को तहे-दिल से स्वीकारा है। एक साधारण सी साइकिल ने महिलाओं की छवि बदल दी उनका मनोबल बढ़ाकर यह आत्मविश्वास दिया कि वे ऐसे अनेकों कार्य कर सकती हैं जो पहले सोचे भी न थे। पढ़ाई-लिखाई भी तो इन्हीं कार्यों में से एक है। अगर आज साइकिल सीखते 1 हुए सारे गाँव के सामने वे गिरकर, लुढ़क कर एक बार फिर खडी हो जाती हैं, तो फिर ऐसा कौन सा काम है जो वे मिलकर नहीं कर पायेंगी ! पढ़ाई-लिखाई से जूझना तो फिर शायद कुछ आसान ही लगता है। खासकर जब वह अकेले नहीं, पर सामूहिक रुप से हिम्मत बाँध लें। बहुत चर्चा है आजादी के पचास सालों की। पर महिला को आजादी कहाँ तक मिली है? गतिशील होने की आजादी, पड़ने-लिखने की आजादी, खुद अपने निर्णय लेने की आज़ादी बहुत हो गया उसे सिलाई-कढ़ाई सिखाना चाहरदीवार में चुपचाप बैठाकर उसे सुई-धागे में उलझाये, रखना। साक्षरता को वास्तव में सशक्तीकरण का माध्यम बनना है तो उसे साइकिल या ट्रैक्टर पर बैठाना होगा, कहीं तो उसकी सहमी हुई शक्ल बदलनी होगी।शीला रानी चुंकत उस समय पुदुकोट्टई की कलेक्टर थीं और वेंकटेश आतरेया 'तमिलनाडु साईस फोरम' संस्था के राज्य समन्वयक साक्षरता अभियान के अपने अनुभवों को उन्होंने एक पुस्तक 'लिट्रेसी एण्ड एम्पावरमेंट में पेश किया था। उनकी अंग्रेजी पुस्तक के एक अंश का यह हिन्दी रूपान्तरण हमने अपने केन्द्र में तैयार किया, और साक्षरताकर्मियों की ट्रेनिंग के लिये इसका इस्तेमाल किया, आशा है पुदुकोट्टई की यह कहानी अन्य जिलों में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये प्रेरणा देगी।
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