000 | 03270nam a2200181Ia 4500 | ||
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999 |
_c53958 _d53958 |
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005 | 20220806104328.0 | ||
008 | 200204s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 370 NAR | ||
100 | _aNarindar,Singh | ||
245 | 0 | _aSanskriti,shiksha aur loktantra / tr. by Chandrabhushan | |
245 | 0 | _nv.1999 | |
260 | _aDelhi | ||
260 | _bGrantha Shilpi | ||
260 | _c1999 | ||
300 | _a82 p. | ||
520 | _aशिक्षा को समय समय पर न जाने कितनी तरह से नए-नए संदर्भों में परिभाषित करने की कोशिश की गई है और कोशिश का यह सिलसिला आज भी जारी है; यह पुस्तक इस बात का सबूत है। जिस तरह की दुनिया में आज हम जी रहे हैं और जिन विकट समस्याओं से हम घिरे हुए हैं, शिक्षा और संस्कृति की व्याख्या के क्रम में उनके संदर्भ यहां बार-बार उभरते हैं। नाभिकीय शस्त्रों की होड़, पूंजीवादी मुनाफे के लिए प्राकृतिक संपदा का भयानक विनाश, विकास के नाम पर बड़े-बड़े बांधों का निर्माण और इनके संभावित खतरे इस पुस्तक में शिक्षा की व्याख्या के लिए आधार प्रस्तुत करते हैं। लेखक का मानना है कि चाहे आप शिक्षा को कैसे भी परिभाषित करें इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह मूलतः मानव केंद्रित है, संस्कृति की सह-प्रक्रिया है, और वर्तमान राजनीति से भी जुड़ी है जिसे सुविधा के लिए लोकतंत्र कहा जाता है। अपने अंतिम विश्लेषण में आज यह यथास्थिति को सुदृढ़ करने का और किसी भी प्रकार के बदलाव को रोकने का शासक वर्ग के हाथ में कारगर हथियार बन गई है। यह शिक्षा हमारे विवेक को तीव्र करने की जगह कुंद करती है, समग्र की जगह अधूरी दृष्टि देती है। शिक्षा में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति को यह पुस्तक नए सिरे से विचार करने को प्रेरित करेगी, ऐसी आशा की जाती है। | ||
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_cB _2ddc |