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082 _aH 370.1 VIV
100 _aVivekananda
245 0 _aSwami Vivekananda ka shiksha darshan
245 0 _nv.1998
260 _aDelhi
260 _bArun Prakashan
260 _c1998
300 _a80p.
520 _aविश्वप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्रियों में भारत के जिन महान शिक्षा-विचारकों का नाम आदर के साथ लिया जाता है, स्वामी विवेकानंद उनमें से एक प्रमुख नाम हैं। विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महर्षि अरविंद, महात्मा गांधी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जाकिर हुसेन, बिनोबा भावे आदि शिक्षाविदों ने शिक्षा पर अपने नये दृष्टिकोण और मौलिक चिन्तन के कारण पूरे विश्व को प्रभावित किया। विवेकानंद संन्यासी-विचारक थे। पर उनका चिन्तन केवल धर्म पर केन्द्रित नहीं था। मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में काम आने वाला ऐसा कोई विषय नहीं है जिस पर स्वामी जी ने व्यापक चिन्तन-मनन न किया हो। मनुष्यता के उत्थान से जुड़े प्रायः सभी विषयों पर स्वामी जी ने अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए स्वामी जी शिक्षा को सबसे ज्यादा कारगर हथियार मानते थे। उनके शिक्षा संबंधी विचारों में सर्वत्र एक नई ताजगी और स्फूर्ति परिलक्षित होती है। स्वामी विवेकानंद शिक्षा में निरंतर परिवर्तन के पक्षधर थे और मनुष्य की आंतरिक प्रतिभा को उभारने पर जोर देते थे। उन्होंने कहा था, "विद्यार्थी की आवश्यकता के अनुसार शिक्षा में परिवर्तन होना चाहिए। अतीत जीवनों ने हमारी प्रवृत्तियों को गढ़ा है। इसलिए विद्यार्थी को उसकी प्रवृत्तियों के अनुसार मार्ग दिखाना चाहिए। जो जहाँ पर है, उसे वहीं से आगे बढ़ाओ। हमने देखा है कि जिनको हम निकम्मा समझते थे, उनको भी श्रीरामकृष्णदेव ने किस प्रकार उत्साहित किया और उनके जीवन का प्रवाह बिल्कुल बदल दिया। उन्होंने कभी भी किसी मनुष्य की विशेष प्रवृत्तियों को नष्ट नहीं होने दिया। उन्होंने अत्यंत पतित मनुष्यों के प्रति भी आशा और उत्साहपूर्ण वचन कहे और उन्हें ऊपर उठा दिया।” प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के शिक्षा संबंधी अमर विचारों को संकलित किया गया है। शिक्षा विषयक ये विचार उनके सम्पूर्ण साहित्य से अत्यंत सावधानीपूर्वक चयनित हैं। यद्यपि हिन्दी में विवेकानंद के शिक्षा संबंधी विचारों पर कुछ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं परन्तु ऐसी सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति पहले कभी नहीं हुई।
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