000 | 03268nam a2200169Ia 4500 | ||
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999 |
_c52921 _d52921 |
||
005 | 20220801154508.0 | ||
008 | 200204s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 418.02 PAL | ||
100 | _aPaliwal, Ritarani | ||
245 | 0 | _aAnuvad Prakriya | |
260 | _aDelhi | ||
260 | _bLalit Prakashan | ||
260 | _c1997 | ||
300 | _a112 p. | ||
520 | _aआधुनिक ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार के साथ अनुवाद कार्य का क्षेत्र विस्तृत हुआ है। इस विस्तृत क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए अनुवाद कार्य के लिए कहा जा सकता है किसी एक भाषा की ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी पाठ-सामग्री का दूसरी भाषा में भाषान्तर या पुनः कथन अनुवाद है। अनुवादक को अनुवाद्य-सामग्री को स्रोत भाषा (Source Language) से लक्ष्य-भाषा (Target Language) में सावधानी से पुनर्प्रस्तुत करना पड़ता है। एक भाषा से दूसरी भाषा में अंतरण और पुनर्प्रस्तुत का यह कार्य एक चुनौती भरा काम होता है। यह कार्य तमाम कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा हुआ इसलिए माना जाता है कि प्रत्येक भाषा एक भिन्न प्रकृति एवं परिवेश लेकर विकसित होती है। उसका संरचनात्मक गठन अपने स्वरूप और आयामों में दूसरी भाषा से भिन्न अर्थ-स्तर का होता है। एक भाषा से दूसरी भाषा की यह भिन्नता वाक्य, पद-बन्ध, वाक्य-रचना, ध्वनि, अर्थ-लय, शब्द-रूप, शब्द-गठन-विन्यास, रूप-विन्यास, अलंकार, छन्द, लोकोक्ति-मुहावरों के प्रयोग की विधि एवं सांस्कृतिक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के अध्ययन से समझी -समझायी जा सकती है। प्रत्येक भाषा के इस निजी सांस्कृतिक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और प्रकृति परिवेशगत विशिष्टताओं के कारण अन्य किसी भाषा में पूरी तरह उसी तरह की समग्र अभिव्यक्ति सम्भव नहीं हो पाती है। | ||
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_cB _2ddc |